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रविवार, 13 दिसंबर 2015

ख़्वाहिशों की किताब...

नर्मो-नाज़ुक   गुलाब    है  उर्दू
सादगी   का    सवाब     है  उर्दू

हसरतों   का   हिसाब   है  उर्दू
ख़्वाहिशों  की  किताब  है  उर्दू

कोई  चंग़ेज़   कोई  हिटलर  हो
ज़ुल्मतों   का   जवाब   है  उर्दू

क़स्रे-उम्मीद  की  दुआ  जैसी
ख़्वाबे -ख़ाना ख़राब    है  उर्दू

पी  के  मसरूर  हैं  इबादत  में
मोमिनों   की   शराब   है  उर्दू

ख़ू-ए-ख़ुसरो से रूहे-ग़ालिब तक
शायरी   का    शबाब    है  उर्दू

कमनसीबों  से  पूछ  कर  देखो
दर्द    का     इंतेख़ाब     है  उर्दू  !

                                                            (2015)

                                                    -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: नर्मो-नाज़ुक: कोमल एवं क्षणभंगुर; सादगी: शालीनता; सवाब: पुण्य; हसरतों: अभिलाषाओं; ख़्वाहिशों: इच्छाओं; चंग़ेज़: मध्य युग का एक मंगोल आक्रमणकारी, अत्याचारी शासक; ज़ुल्मतों: अत्याचारों; क़स्रे-उम्मीद: आशाओं का महल; ख़्वाबे -ख़ाना ख़राब: गृह-विहीन यायावर का स्वप्न;  मसरूर: मदालस; मोमिनों: आस्तिकों; ख़ू-ए-ख़ुसरो: 14वीं सदी के महान शायर, उर्दू के जनक की अस्मिता; रूहे-ग़ालिब: 19 वीं शताब्दी के उर्दू के महानतम शायर, हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब (के काव्य) की आत्मा; शबाब: उत्स, यौवन; कमनसीबों: भाग्यहीनों;  इंतेख़ाब: चयन।