अश्'आर में रखते हैं ख़ूं -ए-दिल निकाल के
हो तब्सिरा हुज़ूर ज़रा देख-भाल के
अफ़सोस ! शहंशाह बेईमां निकल गया
रक्खी थीं हमने कितनी तमन्नाएं पाल के
बेहतर निज़ाम सिर्फ़ ख़याली पुलाव है
दुनिया चला रहे हैं वो जुमले उछाल के
ऐवानेवाला-ज़ेर हैं किस काम के अगर
हासिल न हों जवाब वहां हर सवाल के
लिखिए न दिल पे नाम हमारा लिहाज़ में
जब तक न मुतमईं हों कि हम हैं कमाल के
आए जो दिल की बात ज़ुबां पर तो किस तरह
सदियों से मुंतज़िर हैं किसी हमख़्याल के
जीना भी फ़र्ज़ हो तो ये दुनिया बुरी नहीं
देखे हैं ख़ुल्द ने भी कई दिन मलाल के !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अश्'आर: शे'र का बहुव.; तब्सिरा: टीका-टिप्पणी, समीक्षा; बेईमां: भ्रष्टाचारी; तमन्नाएं: अभिलाषाएं; बेहतर निज़ाम: सुशासन; ख़याली पुलाव: काल्पनिक भोज/विचार; जुमले: कोरे वाक्य; ऐवानेवाला-ज़ेर: उच्च और निम्न सदन, राज्य सभा-लोक सभा; हासिल: प्राप्त; लिहाज़: शिष्टाचार, समादर; मुतमईं: आश्वस्त; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; हमख़्याल: समान विचार वाला; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; ख़ुल्द: स्वर्ग; मलाल: खेद।
हो तब्सिरा हुज़ूर ज़रा देख-भाल के
अफ़सोस ! शहंशाह बेईमां निकल गया
रक्खी थीं हमने कितनी तमन्नाएं पाल के
बेहतर निज़ाम सिर्फ़ ख़याली पुलाव है
दुनिया चला रहे हैं वो जुमले उछाल के
ऐवानेवाला-ज़ेर हैं किस काम के अगर
हासिल न हों जवाब वहां हर सवाल के
लिखिए न दिल पे नाम हमारा लिहाज़ में
जब तक न मुतमईं हों कि हम हैं कमाल के
आए जो दिल की बात ज़ुबां पर तो किस तरह
सदियों से मुंतज़िर हैं किसी हमख़्याल के
जीना भी फ़र्ज़ हो तो ये दुनिया बुरी नहीं
देखे हैं ख़ुल्द ने भी कई दिन मलाल के !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अश्'आर: शे'र का बहुव.; तब्सिरा: टीका-टिप्पणी, समीक्षा; बेईमां: भ्रष्टाचारी; तमन्नाएं: अभिलाषाएं; बेहतर निज़ाम: सुशासन; ख़याली पुलाव: काल्पनिक भोज/विचार; जुमले: कोरे वाक्य; ऐवानेवाला-ज़ेर: उच्च और निम्न सदन, राज्य सभा-लोक सभा; हासिल: प्राप्त; लिहाज़: शिष्टाचार, समादर; मुतमईं: आश्वस्त; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; हमख़्याल: समान विचार वाला; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; ख़ुल्द: स्वर्ग; मलाल: खेद।