कहीं हम ही बुरे हों, तो बता दें
कहीं ख़ुद में कमी हो तो छुपा दें
हमारी बेकसी में क्या नया है
समझ लें तो रक़ीबों को सुना दें
चलो, ये ही सही, अब आप हमको
हमेशा के लिए दिल से हटा दें
हमें मत भूल कर भी आज़माना
न हो ऐसा कि हम करके दिखा दें
हुकूमत आपकी है, आप जानें
भुला दें, या सभी वादे निभा दें
न चाहें नूर से गर सामना तो
चराग़े-दिल हमारा भी बुझा दें
न हों बेज़ार नाहक़ ज़िंदगी से
कहें तो हम उन्हें जीना सिखा दें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेकसी: असहायता; रक़ीबों: प्रतिद्वंदियों; नूर: प्रकाश, आत्म-बोध; गर: यदि; चराग़े-दिल: हृदय-दीप; बेज़ार: हतोत्साह, निराश; नाहक़: निरर्थक, व्यर्थ ।
कहीं ख़ुद में कमी हो तो छुपा दें
हमारी बेकसी में क्या नया है
समझ लें तो रक़ीबों को सुना दें
चलो, ये ही सही, अब आप हमको
हमेशा के लिए दिल से हटा दें
हमें मत भूल कर भी आज़माना
न हो ऐसा कि हम करके दिखा दें
हुकूमत आपकी है, आप जानें
भुला दें, या सभी वादे निभा दें
न चाहें नूर से गर सामना तो
चराग़े-दिल हमारा भी बुझा दें
न हों बेज़ार नाहक़ ज़िंदगी से
कहें तो हम उन्हें जीना सिखा दें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेकसी: असहायता; रक़ीबों: प्रतिद्वंदियों; नूर: प्रकाश, आत्म-बोध; गर: यदि; चराग़े-दिल: हृदय-दीप; बेज़ार: हतोत्साह, निराश; नाहक़: निरर्थक, व्यर्थ ।