नूर का इन्तेख़ाब कर आए
क़ैस का घर ख़राब कर आए
चांद की शबनमी शुआओं को
छेड़ कर सुर्ख़ आब कर आए
तोड़ डाला हिजाब महफ़िल में
ज़ुल्म वो: बे-हिसाब कर आए
शाह जब मुल्क से मुख़ातिब था
हम उसे बे-नक़ाब कर आए
घर जला कर रहे-रिआया में
ज़ीस्त् को कामयाब कर आए
ख़ुल्द की ख़ू बिगाड़ दी हमने
आशिक़ी का सवाब कर आए
काट कर सर रखा मुसल्ले पर
' लाह को लाजवाब कर आए !
(2016 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नूर: प्रकाश; इन्तेख़ाब: चयन; क़ैस: लैला (यहां, काली रात) का प्रेमी, मजनूं ; शबनमी : ओस-जैसी; शुआओं: किरणों;
सुर्ख़ आब : रक्तिम, लज्जा से लाल; हिजाब : मुखावरण ; महफ़िल : भरी सभा; ज़ुल्म : अन्याय ; मुल्क : देश, लोक; मुख़ातिब: संबोधित ; बे-नक़ाब : अनावृत ; रहे-रिआया: समाज के मार्ग, सामाजिक हित का मार्ग; ज़ीस्त : जीवन ; कामयाब : सफल ; ख़ुल्द:स्वर्ग;
ख़ू : विशिष्टता, छबि; आशिक़ी : उत्कट प्रेम ; सवाब : पुण्य ; मुसल्ला : जाएनमाज़, नमाज़ पढ़ने के लिए बिछाया जाने वाला वस्त्र;
'लाह : अल्लाह, विधाता, ब्रह्म ।
क़ैस का घर ख़राब कर आए
चांद की शबनमी शुआओं को
छेड़ कर सुर्ख़ आब कर आए
तोड़ डाला हिजाब महफ़िल में
ज़ुल्म वो: बे-हिसाब कर आए
शाह जब मुल्क से मुख़ातिब था
हम उसे बे-नक़ाब कर आए
घर जला कर रहे-रिआया में
ज़ीस्त् को कामयाब कर आए
ख़ुल्द की ख़ू बिगाड़ दी हमने
आशिक़ी का सवाब कर आए
काट कर सर रखा मुसल्ले पर
' लाह को लाजवाब कर आए !
(2016 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नूर: प्रकाश; इन्तेख़ाब: चयन; क़ैस: लैला (यहां, काली रात) का प्रेमी, मजनूं ; शबनमी : ओस-जैसी; शुआओं: किरणों;
सुर्ख़ आब : रक्तिम, लज्जा से लाल; हिजाब : मुखावरण ; महफ़िल : भरी सभा; ज़ुल्म : अन्याय ; मुल्क : देश, लोक; मुख़ातिब: संबोधित ; बे-नक़ाब : अनावृत ; रहे-रिआया: समाज के मार्ग, सामाजिक हित का मार्ग; ज़ीस्त : जीवन ; कामयाब : सफल ; ख़ुल्द:स्वर्ग;
ख़ू : विशिष्टता, छबि; आशिक़ी : उत्कट प्रेम ; सवाब : पुण्य ; मुसल्ला : जाएनमाज़, नमाज़ पढ़ने के लिए बिछाया जाने वाला वस्त्र;
'लाह : अल्लाह, विधाता, ब्रह्म ।