दहक़ां की ख़ुदकुशी का किसको मलाल है
लाशा धधक रहा है ज़िंदा सवाल है
ताजिर सुंघा रहे हैं जूता अवाम को
गाहक गुज़र न जाए इसका ख़्याल है
वो अक्सरीयतों पर इठला रहे हैं यूं
तुर्रे में शाह के ज्यों 'अन्क़ा का बाल है
ये-वो कि आप सब पर कुर्सी सवार है
सय्याद के बदन पर दुम्बे की ख़ाल है
जन्नत बना रहा है शद्दाद मुल्क को
कल तक हराम था जो अब वो हलाल है
रोके न रुक सकेगी मेंहगाई रिज़्क़ की
सरकार की रग़ों में ख़ूने-दलाल है
मेहमान हैं मुहाज़िर दहक़ान ख़ुल्द में
घर-ख़र्च से ख़ुदा का जीना मुहाल है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दहक़ां: कृषक गण; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; मलाल: खेद, दुःख; लाशा: शव; ताजिर: व्यापारी; अवाम:जन-सामान्य;
गाहक: ग्राहक; अक्सरीयतों: बहुमतों; तुर्रा: मुकुट में लगाया जाने वाला फुंदना; 'अन्क़ा: एक काल्पनिक पक्षी; सय्याद: आखेटक;
दुम्बा: भेड़; जन्नत: स्वर्ग; शद्दाद: एक मिथकीय, ईश्वर-द्रोही राजा, जिसने कृत्रिम स्वर्ग का निर्माण कराया था; हराम: अपवित्र, धर्म-विरुद्ध; हलाल: धर्म-सम्मत; रिज़्क़: खाद्य-पदार्थ; रग़ों: रक्त-वाहिकाओं; ख़ूने-दलाल: कूट-मध्यस्थ का रक्त; मुहाज़िर: शरणार्थी; ख़ुल्द: स्वर्ग; मुहाल: अत्यधिक कठिन ।
लाशा धधक रहा है ज़िंदा सवाल है
ताजिर सुंघा रहे हैं जूता अवाम को
गाहक गुज़र न जाए इसका ख़्याल है
वो अक्सरीयतों पर इठला रहे हैं यूं
तुर्रे में शाह के ज्यों 'अन्क़ा का बाल है
ये-वो कि आप सब पर कुर्सी सवार है
सय्याद के बदन पर दुम्बे की ख़ाल है
जन्नत बना रहा है शद्दाद मुल्क को
कल तक हराम था जो अब वो हलाल है
रोके न रुक सकेगी मेंहगाई रिज़्क़ की
सरकार की रग़ों में ख़ूने-दलाल है
मेहमान हैं मुहाज़िर दहक़ान ख़ुल्द में
घर-ख़र्च से ख़ुदा का जीना मुहाल है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दहक़ां: कृषक गण; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; मलाल: खेद, दुःख; लाशा: शव; ताजिर: व्यापारी; अवाम:जन-सामान्य;
गाहक: ग्राहक; अक्सरीयतों: बहुमतों; तुर्रा: मुकुट में लगाया जाने वाला फुंदना; 'अन्क़ा: एक काल्पनिक पक्षी; सय्याद: आखेटक;
दुम्बा: भेड़; जन्नत: स्वर्ग; शद्दाद: एक मिथकीय, ईश्वर-द्रोही राजा, जिसने कृत्रिम स्वर्ग का निर्माण कराया था; हराम: अपवित्र, धर्म-विरुद्ध; हलाल: धर्म-सम्मत; रिज़्क़: खाद्य-पदार्थ; रग़ों: रक्त-वाहिकाओं; ख़ूने-दलाल: कूट-मध्यस्थ का रक्त; मुहाज़िर: शरणार्थी; ख़ुल्द: स्वर्ग; मुहाल: अत्यधिक कठिन ।