परेशां हैं यहां तो थे वहां भी
करे है तंज़ हम पर मेह्र्बां भी
हमें ज़ाया न समझें साहिबे-दिल
हरारत है अभी बाक़ी यहां भी
दिए थे जो वफ़ा के ज़ख़्म तुमने
लगे हैं फिर नए से वो निशां भी
लगा है मर्ज़ जबसे दिलकशी का
करो हो क़त्ल जाओ हो जहां भी
बुज़ुर्गों ने बहुत बहलाए रक्खा
मगर बेताब हैं अब नौजवां भी
ख़बर होगी तभी अह् ले वतन को
लुटेंगे जब अमीरे कारवां भी
जहां को नूर वो दे जाएंगे हम
करेगा फ़ख़्र हम पर आस्मां भी !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंज़: व्यंग्य; मेह्रबां: भले मानुस, कृपालु; ज़ाया: नष्टप्राय, व्यर्थ; साहिबे दिल: हृदयवान, संवेदनशील; हरारत: ऊष्मा, इच्छाएं; वफ़ा: निष्ठा; ज़ख़्म: घाव; निशां: चिह्न; मर्ज़: रोग; दिलकशी: मन जीतने, चित्ताकर्षक लगने; करो हो: करते हो; क़त्ल: हत्या; जाओ हो: जाते हो; बुज़ुर्गों: वरिष्ठ जन; बेताब: व्याकुल; नौजवां: युवजन; ख़बर: बोध; अह् ले वतन: देशवासी; अमीरे कारवां: यात्री दाल के नायक, सत्ताधीश; जहां: संसार; नूर: प्रकाश; फ़ख़्र: गर्व; आस्मां: विधाता।
करे है तंज़ हम पर मेह्र्बां भी
हमें ज़ाया न समझें साहिबे-दिल
हरारत है अभी बाक़ी यहां भी
दिए थे जो वफ़ा के ज़ख़्म तुमने
लगे हैं फिर नए से वो निशां भी
लगा है मर्ज़ जबसे दिलकशी का
करो हो क़त्ल जाओ हो जहां भी
बुज़ुर्गों ने बहुत बहलाए रक्खा
मगर बेताब हैं अब नौजवां भी
ख़बर होगी तभी अह् ले वतन को
लुटेंगे जब अमीरे कारवां भी
जहां को नूर वो दे जाएंगे हम
करेगा फ़ख़्र हम पर आस्मां भी !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंज़: व्यंग्य; मेह्रबां: भले मानुस, कृपालु; ज़ाया: नष्टप्राय, व्यर्थ; साहिबे दिल: हृदयवान, संवेदनशील; हरारत: ऊष्मा, इच्छाएं; वफ़ा: निष्ठा; ज़ख़्म: घाव; निशां: चिह्न; मर्ज़: रोग; दिलकशी: मन जीतने, चित्ताकर्षक लगने; करो हो: करते हो; क़त्ल: हत्या; जाओ हो: जाते हो; बुज़ुर्गों: वरिष्ठ जन; बेताब: व्याकुल; नौजवां: युवजन; ख़बर: बोध; अह् ले वतन: देशवासी; अमीरे कारवां: यात्री दाल के नायक, सत्ताधीश; जहां: संसार; नूर: प्रकाश; फ़ख़्र: गर्व; आस्मां: विधाता।