शहर भर को किया रुस्वा किसी की बेवफ़ाई ने
हमें तो मार ही डाला ख़याल-ए-जगहंसाई ने
क़सीदे पढ़ रहे हों सब तुम्हारे हुस्न के चाहे
किया है दर-ब-दर हमको तुम्हारी दिलरुबाई ने
कभी ख़ुदग़र्ज़ कहलाए कभी समझे गए काफ़िर
हज़ारों रंग देखे हैं हमारी आशनाई ने
हमारी ख़ुशनसीबी है के: वो: आशिक़ हुए हम पे
वगरन: किसका दिल महफ़ूज़ रक्खा है ख़ुदाई ने
उतर आए हैं सारे ज़ख़्म यारो काग़ज़-ए-दिल पे
शब-ए-तारीक हमको फिर सताया रौशनाई ने !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुस्वा: लज्जित; क़सीदे: प्रशंसात्मक गीत; दिलरुबाई: मनोहरता; काफ़िर: नास्तिक;
आशनाई: लगाव, मित्रता; वगरन: वरना, अन्यथा; महफ़ूज़: सुरक्षित; शब-ए-तारीक: अमावस्या, अंधेरी रात;
रौशनाई: शाब्दिक अर्थ स्याही, भावान्तर से, प्रकाशित करने वाली वस्तु, अभिव्यक्ति।
हमें तो मार ही डाला ख़याल-ए-जगहंसाई ने
क़सीदे पढ़ रहे हों सब तुम्हारे हुस्न के चाहे
किया है दर-ब-दर हमको तुम्हारी दिलरुबाई ने
कभी ख़ुदग़र्ज़ कहलाए कभी समझे गए काफ़िर
हज़ारों रंग देखे हैं हमारी आशनाई ने
हमारी ख़ुशनसीबी है के: वो: आशिक़ हुए हम पे
वगरन: किसका दिल महफ़ूज़ रक्खा है ख़ुदाई ने
उतर आए हैं सारे ज़ख़्म यारो काग़ज़-ए-दिल पे
शब-ए-तारीक हमको फिर सताया रौशनाई ने !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुस्वा: लज्जित; क़सीदे: प्रशंसात्मक गीत; दिलरुबाई: मनोहरता; काफ़िर: नास्तिक;
आशनाई: लगाव, मित्रता; वगरन: वरना, अन्यथा; महफ़ूज़: सुरक्षित; शब-ए-तारीक: अमावस्या, अंधेरी रात;
रौशनाई: शाब्दिक अर्थ स्याही, भावान्तर से, प्रकाशित करने वाली वस्तु, अभिव्यक्ति।