रुख़ - ए - बहार मेरे शह्र ने नहीं देखा
सिला - ए - इंतज़ार सब्र ने नहीं देखा
तू बदगुमाँ है ग़रीबां पे ज़ुल्म ढाता है
मेरा जलाल तेरे जब्र ने नहीं देखा
फ़रेब-ओ-मक्र की इफ़रात है जहाँ देखो
ये: दौर और किसी उम्र ने नहीं देखा
तू संगदिल तो नहीं है मगर कभी तुझको
मेरे मकां पे शब् - ए -क़द्र ने नहीं देखा !
हर एक सिम्त आसमां से नियामत बरसी
सहरा-ए-दिल की तरफ़ अब्र ने नहीं देखा।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़ - ए - बहार: बसंत का मुख; सिला - ए - इंतज़ार: प्रतीक्षा का पुरस्कार; बदगुमाँ: भ्रमित, बुरे विचार वाला; ग़रीबां: कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अ. स. के साथी; ज़ुल्म: अत्याचार; जलाल: तेज; जब्र: अन्याय, विवश करना; फ़रेब-ओ-मक्र: छल-छद्म;
इफ़रात: बहुतायत; संगदिल: पाषाण-हृदय; मकां: क़ब्र, समाधि; शब् - ए -क़द्र: मृतात्माओं के सम्मान की रात; सिम्त: ओर; आसमां: स्वर्ग, परलोक; नियामत: कृपा; सहरा-ए-दिल: हृदय का मरुस्थल; अब्र: मेघ।
सिला - ए - इंतज़ार सब्र ने नहीं देखा
तू बदगुमाँ है ग़रीबां पे ज़ुल्म ढाता है
मेरा जलाल तेरे जब्र ने नहीं देखा
फ़रेब-ओ-मक्र की इफ़रात है जहाँ देखो
ये: दौर और किसी उम्र ने नहीं देखा
तू संगदिल तो नहीं है मगर कभी तुझको
मेरे मकां पे शब् - ए -क़द्र ने नहीं देखा !
हर एक सिम्त आसमां से नियामत बरसी
सहरा-ए-दिल की तरफ़ अब्र ने नहीं देखा।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़ - ए - बहार: बसंत का मुख; सिला - ए - इंतज़ार: प्रतीक्षा का पुरस्कार; बदगुमाँ: भ्रमित, बुरे विचार वाला; ग़रीबां: कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अ. स. के साथी; ज़ुल्म: अत्याचार; जलाल: तेज; जब्र: अन्याय, विवश करना; फ़रेब-ओ-मक्र: छल-छद्म;
इफ़रात: बहुतायत; संगदिल: पाषाण-हृदय; मकां: क़ब्र, समाधि; शब् - ए -क़द्र: मृतात्माओं के सम्मान की रात; सिम्त: ओर; आसमां: स्वर्ग, परलोक; नियामत: कृपा; सहरा-ए-दिल: हृदय का मरुस्थल; अब्र: मेघ।