तड़पना और तड़पाना किसे अच्छा नहीं लगता
ग़रीबों पर सितम ढाना किसे अच्छा नहीं लगता
ज़रा-सी ही जहालत में कई घर टूट जाते हैं
मगर अफ़वाह फैलाना किसे अच्छा नहीं लगता
जहां पर मैकदे में वाइज़ों को मुफ़्त मिलती हो
वहां मदहोश हो जाना किसे अच्छा नहीं लगता
अजब क्या है सियासतदां अगर ज़रदार हो जाएं
वतन को लूट कर खाना किसे अच्छा नहीं लगता
हज़ारों बार लुट कर भी वफ़ा का हाथ थामे हैं
हमारे ख़्वाब में आना किसे अच्छा नहीं लगता
हमारी साफ़गोई से भले ही कांप जाते हों
हमें कमज़र्फ़ बतलाना किसे अच्छा नहीं लगता
बिछा है शाह क़दमों के तले सरमाएदारों के
मगर ख़ुद्दार कहलाना किसे अच्छा नहीं लगता
लुटाते जा रहे हैं बाप की दौलत समझ कर सब
ख़ुदा की हैसियत पाना किसे अच्छा नहीं लगता !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सितम: अत्याचार; जहालत: बुद्धिहीनता, अ-विवेक; मैकदे: मदिरालय; वाइज़ों: धर्मोपदेशकों; सियासतदां: राजनेता;
ज़रदार: स्वर्णशाली, समृद्ध; वफ़ा: निष्ठा; साफ़गोई: स्पष्टवादिता; कमज़र्फ़: अ-गंभीर; तले: नीचे; सरमाएदारों: पूंजीपतियों;
ख़ुद्दार: स्वाभिमानी; हैसियत: प्रास्थिति ।
ग़रीबों पर सितम ढाना किसे अच्छा नहीं लगता
ज़रा-सी ही जहालत में कई घर टूट जाते हैं
मगर अफ़वाह फैलाना किसे अच्छा नहीं लगता
जहां पर मैकदे में वाइज़ों को मुफ़्त मिलती हो
वहां मदहोश हो जाना किसे अच्छा नहीं लगता
अजब क्या है सियासतदां अगर ज़रदार हो जाएं
वतन को लूट कर खाना किसे अच्छा नहीं लगता
हज़ारों बार लुट कर भी वफ़ा का हाथ थामे हैं
हमारे ख़्वाब में आना किसे अच्छा नहीं लगता
हमारी साफ़गोई से भले ही कांप जाते हों
हमें कमज़र्फ़ बतलाना किसे अच्छा नहीं लगता
बिछा है शाह क़दमों के तले सरमाएदारों के
मगर ख़ुद्दार कहलाना किसे अच्छा नहीं लगता
लुटाते जा रहे हैं बाप की दौलत समझ कर सब
ख़ुदा की हैसियत पाना किसे अच्छा नहीं लगता !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सितम: अत्याचार; जहालत: बुद्धिहीनता, अ-विवेक; मैकदे: मदिरालय; वाइज़ों: धर्मोपदेशकों; सियासतदां: राजनेता;
ज़रदार: स्वर्णशाली, समृद्ध; वफ़ा: निष्ठा; साफ़गोई: स्पष्टवादिता; कमज़र्फ़: अ-गंभीर; तले: नीचे; सरमाएदारों: पूंजीपतियों;
ख़ुद्दार: स्वाभिमानी; हैसियत: प्रास्थिति ।