जम्हूरियत का जनाज़ा सजा रहे हैं वो:
के: हिन्द को अमेरिका बना रहे हैं वो:
हमारी क़ब्र पे ताजिर उठा रहे हैं महल
हर एक लूट को जायज़ बता रहे हैं वो:
मिले न हक़ जो मांगने से तो क्यूं न छीनें लोग
जुलूस-ए-क़ौम पे गोली चला रहे हैं वो:
सवाल नीयत-ए-हाकिम पे उठेंगे हर दम
नज़र के फ़र्क़ को क्या-क्या बता रहे हैं वो:
उमीद थी के: हर एक घर में रौशनी होगी
मगर अवाम के चूल्हे बुझा रहे हैं वो: !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जम्हूरियत: लोकतंत्र; जनाज़ा: अर्थी; ताजिर: व्यापारी; जायज़: उचित;
जुलूस-ए-क़ौम: नागरिकों का जुलूस; नीयत-ए-हाकिम: शासक-वर्ग के संकल्प।