रूठने-मिलने-बिछड़ने के फ़साने और थे
आँख से दिल में उतरने के बहाने और थे
अब वफ़ा का नाम ले कर लूटने का है चलन
इश्क़ में कुछ कर गुज़रने के ज़माने और थे
हम समझते हैं तुम्हारी गुफ़्तगू के मायने
ज़िक्र यूँ तो था हमारा, पर निशाने और थे
मौसिक़ी के नाम से दहशत-सी होती है हमें
रूह को तस्कीन बख़्शें वो: तराने और थे
और थे माशूक़ वो: जो दौड़ आएं अर्श से
नाल: कर के सुर्ख़रू: हों वो: दीवाने और थे !
( 2 0 1 3 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुफ़्तगू: बातचीत; ज़िक्र: उल्लेख; मौसिक़ी: संगीत; तस्कीन: शीतलता-पूर्ण
संतुष्टि; माशूक़: प्रिय; अर्श: आकाश; नाल: : चिल्ला कर शिकायत करना;
सुर्ख़रू: होना : धन्य होना।
आँख से दिल में उतरने के बहाने और थे
अब वफ़ा का नाम ले कर लूटने का है चलन
इश्क़ में कुछ कर गुज़रने के ज़माने और थे
हम समझते हैं तुम्हारी गुफ़्तगू के मायने
ज़िक्र यूँ तो था हमारा, पर निशाने और थे
मौसिक़ी के नाम से दहशत-सी होती है हमें
रूह को तस्कीन बख़्शें वो: तराने और थे
और थे माशूक़ वो: जो दौड़ आएं अर्श से
नाल: कर के सुर्ख़रू: हों वो: दीवाने और थे !
( 2 0 1 3 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुफ़्तगू: बातचीत; ज़िक्र: उल्लेख; मौसिक़ी: संगीत; तस्कीन: शीतलता-पूर्ण
संतुष्टि; माशूक़: प्रिय; अर्श: आकाश; नाल: : चिल्ला कर शिकायत करना;
सुर्ख़रू: होना : धन्य होना।