ज़िद नहीं है मगर आज दीदार हो
तूर से फिर मरासिम का इज़हार हो
इश्क़ हो या महज़ आपकी दिल्लगी
ये: सियासत मगर आख़िरी बार हो
सात तालों में दिल की हिफ़ाज़त करें
आपको ज़िंदगी से अगर प्यार हो
ज़ख़्म हों दर्द हो अश्क हों आह हो
दुश्मनों को न उल्फ़त का आज़ार हो
लड़खड़ाते रहें हम क़दम-दर-क़दम
वक़्त की तेज़ इतनी न रफ़्तार हो
दीद को आपकी ज़िंदगी छोड़ दें
कोई हम-सा जहां में परस्तार हो
ज़रिय:-ए-दुश्मनी है हिजाबे-ख़ुदा
क्यूं इबादत में पर्दों की दीवार हो ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीदार: दर्शन; तूर: अरब में एक पर्वत, जिस पर चढ़ कर हज़रत मूसा ( अ.स.) ख़ुदा से वार्त्तालाप करते थे; मरासिम: सम्बंध; इज़हार: प्रदर्शन; उल्फ़त का आज़ार: प्रेम-रोग; दीद: 'दीदार' का लघु-रूप, दर्शन; परस्तार: पूजा करने वाला; ज़रिय:-ए-दुश्मनी: शत्रुता का उपकरण; हिजाबे-ख़ुदा: ख़ुदा का पर्दा।
तूर से फिर मरासिम का इज़हार हो
इश्क़ हो या महज़ आपकी दिल्लगी
ये: सियासत मगर आख़िरी बार हो
सात तालों में दिल की हिफ़ाज़त करें
आपको ज़िंदगी से अगर प्यार हो
ज़ख़्म हों दर्द हो अश्क हों आह हो
दुश्मनों को न उल्फ़त का आज़ार हो
लड़खड़ाते रहें हम क़दम-दर-क़दम
वक़्त की तेज़ इतनी न रफ़्तार हो
दीद को आपकी ज़िंदगी छोड़ दें
कोई हम-सा जहां में परस्तार हो
ज़रिय:-ए-दुश्मनी है हिजाबे-ख़ुदा
क्यूं इबादत में पर्दों की दीवार हो ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीदार: दर्शन; तूर: अरब में एक पर्वत, जिस पर चढ़ कर हज़रत मूसा ( अ.स.) ख़ुदा से वार्त्तालाप करते थे; मरासिम: सम्बंध; इज़हार: प्रदर्शन; उल्फ़त का आज़ार: प्रेम-रोग; दीद: 'दीदार' का लघु-रूप, दर्शन; परस्तार: पूजा करने वाला; ज़रिय:-ए-दुश्मनी: शत्रुता का उपकरण; हिजाबे-ख़ुदा: ख़ुदा का पर्दा।