कब तक तेरी अना से मेरा सर बचा रहे
ये भी तो कम नहीं कि मेरा घर बचा रहे
मुफ़्लिस को शबे-वस्ल पशेमां न कीजिए
मेहमां के एहतेराम को बिस्तर बचा रहे
रहियो मेरे क़रीब, मेरे घर के सामने
कुछ तो कहीं निगाह को बेहतर बचा रहे
बेशक़ दिले-ख़ुदा में ज़रा भी रहम न हो
आंखों में आदमी की समंदर बचा रहे
मस्जिद न मुअज़्ज़िन न ख़ुदा हो कहीं मगर
मस्जूद की निगाह में मिंबर बचा रहे
शाहों का बस चले तो ख़ुदा की कसम मियां
क़ारीं बचें कहीं, न ये शायर बचा रहे
क़ातिल ! तेरा निज़ाम बदल कर दिखाएंगे
सीने में आग, हाथ में पत्थर बचा रहे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अना: अहंकार; मुफ़्लिस: विपन्न; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; पशेमां: लज्जित; मेहमां: अतिथि; एहतेराम: सम्मान, सत्कार; रहम:दया; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; मस्जूद: सज्दे में (नतमस्तक) बैठा व्यक्ति; मिंबर: वह पत्थर जिस पर खड़े होकर पेश इमाम नमाज़ पढ़ाते हैं; क़ारीं: पाठक गण; निज़ाम: शासन।
ये भी तो कम नहीं कि मेरा घर बचा रहे
मुफ़्लिस को शबे-वस्ल पशेमां न कीजिए
मेहमां के एहतेराम को बिस्तर बचा रहे
रहियो मेरे क़रीब, मेरे घर के सामने
कुछ तो कहीं निगाह को बेहतर बचा रहे
बेशक़ दिले-ख़ुदा में ज़रा भी रहम न हो
आंखों में आदमी की समंदर बचा रहे
मस्जिद न मुअज़्ज़िन न ख़ुदा हो कहीं मगर
मस्जूद की निगाह में मिंबर बचा रहे
शाहों का बस चले तो ख़ुदा की कसम मियां
क़ारीं बचें कहीं, न ये शायर बचा रहे
क़ातिल ! तेरा निज़ाम बदल कर दिखाएंगे
सीने में आग, हाथ में पत्थर बचा रहे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अना: अहंकार; मुफ़्लिस: विपन्न; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; पशेमां: लज्जित; मेहमां: अतिथि; एहतेराम: सम्मान, सत्कार; रहम:दया; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; मस्जूद: सज्दे में (नतमस्तक) बैठा व्यक्ति; मिंबर: वह पत्थर जिस पर खड़े होकर पेश इमाम नमाज़ पढ़ाते हैं; क़ारीं: पाठक गण; निज़ाम: शासन।
क़ातिल ! तेरा निज़ाम बदल कर दिखाएंगे
जवाब देंहटाएंसीने में आग, हाथ में पत्थर बचा रहे !
क्या खूब , क्या खूब.. उम्दा