नए एहबाब कुछ ज़्याद: मुहब्बत चाहते हैं
हमारी ज़ात पर अपनी हुकूमत चाहते हैं
वो देना चाहते हैं दिल हमें इक शर्त्त रख कर
हमारी दौलते-ईमां अमानत चाहते हैं
हमारी नींद को आज़ाद करने के लिए वो
किसी मश्हूर हस्ती की ज़मानत चाहते हैं
किसी दिन पूछिए दिल से नीयत में खोट क्या है
हसीं क्यूं कर निगाहों में शराफ़त चाहते हैं
दरख़्तों का यक़ीं ही उठ गया है मौसमों से
हरे पत्ते हवाओं से हिफ़ाज़त चाहते हैं
मिटाना चाहता है तो मिटा दे, देर कैसी
कहां हम शाह से कोई रियायत चाहते हैं
दिलों में फ़र्क़ पैदा कर हमारे हुक्मरां अब
ख़ुदा के नाम पर अपनी सियासत चाहते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहबाब: मित्र, प्रेमी; ज़ात: सर्वस्व; हुकूमत: शासन; दौलते-ईमां: आस्था की संपत्ति; अमानत: धरोहर, सुरक्षा-निधि;
मश्हूर हस्ती: प्रसिद्ध व्यक्ति; ज़मानत: प्रतिभूति; शराफ़त: शिष्टता; दरख़्तों: वृक्षों; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; रियायत: छूट;
हुक्मरां: शासक-गण; सियासत: राजनीति।
हमारी ज़ात पर अपनी हुकूमत चाहते हैं
वो देना चाहते हैं दिल हमें इक शर्त्त रख कर
हमारी दौलते-ईमां अमानत चाहते हैं
हमारी नींद को आज़ाद करने के लिए वो
किसी मश्हूर हस्ती की ज़मानत चाहते हैं
किसी दिन पूछिए दिल से नीयत में खोट क्या है
हसीं क्यूं कर निगाहों में शराफ़त चाहते हैं
दरख़्तों का यक़ीं ही उठ गया है मौसमों से
हरे पत्ते हवाओं से हिफ़ाज़त चाहते हैं
मिटाना चाहता है तो मिटा दे, देर कैसी
कहां हम शाह से कोई रियायत चाहते हैं
दिलों में फ़र्क़ पैदा कर हमारे हुक्मरां अब
ख़ुदा के नाम पर अपनी सियासत चाहते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहबाब: मित्र, प्रेमी; ज़ात: सर्वस्व; हुकूमत: शासन; दौलते-ईमां: आस्था की संपत्ति; अमानत: धरोहर, सुरक्षा-निधि;
मश्हूर हस्ती: प्रसिद्ध व्यक्ति; ज़मानत: प्रतिभूति; शराफ़त: शिष्टता; दरख़्तों: वृक्षों; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; रियायत: छूट;
हुक्मरां: शासक-गण; सियासत: राजनीति।