आदाब-ए-इबादत सीख ज़रा
थोड़ी-सी बग़ावत सीख ज़रा
पीना है तो छलका दे साग़र
रिन्दों से नफ़ासत सीख ज़रा
अबरू भी क़यामत ढाते हैं
अल्फाज़-ए-किफ़ायत सीख ज़रा
सुनता है, ख़ुदा भी सुनता है
अंदाज़ -ए- शिकायत सीख ज़रा
तू ज़ात-ए-ख़ुदा है के: फ़राऊं
बन्दों पे इनायत सीख ज़रा
मस्जिद में 'अनलहक़' कहता है
कमज़र्फ़, सियासत सीख ज़रा।
(2007)
-सुरेश स्वप्निल