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सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

आपकी उमर भी है !

जहां  में  आग  लगी  है  तुम्हें  ख़बर  भी है
तुम्हारे  दिल  पे  किसी  बात  का  असर  भी  है

अभी  है  वक़्त  मुरीदों  की  दुआएं  ले  लो
अदा  है  नाज़  भी  है  आपकी  उमर  भी  है

सहर  भी  आएगी  बादे-सबा  भी  आएगी
अभी  बहार  भी  है  और  दीदावर  भी  है

समझ के  सोच  के  पीना  निगाहे-साक़ी  से
ये:  जाम  राहते-जां  ही  नहीं  ज़हर  भी  है

निखार  दें  नक़ूश  आओ  रू-ब-रू  बैठो
हमारे  पास  आंख  भी  है  और  नज़र  भी  है

अभी  से  हार  न  मानो  उम्मीद  बाक़ी  है
निज़ामे-कुहन  के  आगे नई  सहर  भी  है

हमारा  काम  इबादत  है  हुस्न  हो  के:  ख़ुदा
दुआ  अगर  है  इधर  तो  असर  उधर  भी  है

ख़ुदा  ने  ख़ूब  संवारा  है  ख़ू-ए-शायर  को
एक  ही  वक़्त  सिकन्दर  है  दर-ब-दर  भी  है !

                                                              ( 2013 )

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: 



मक़ाम 10000 !

आदाब अर्ज़, दोस्तों !
आज  बहुत अरसे बाद आपसे सीधे मुखातिब हो रहा हूँ। सोच रहा था के 'साझा आसमान' की पहली सालगिरह पर, यानी 29 अक्टूबर को ही बात करूँगा, मगर आपके उन्सो-ख़ुलूस ने मुझे आज वाकई मजबूर कर दिया …
वजह ???
आज आपके 'साझा आसमान' ने एक मक़ाम हासिल किया है, 10,000 बार देखे जाने का !
यह शायद कोई बहुत बड़ी, ख़ुशी या फ़ख़्र की बात नहीं है मगर एक मक़ाम तो है ही !
हमने यह मक़ाम हासिल किया, वह भी सिर्फ़ 350 दिन और 265 पोस्ट्स के ज़रिए !
बधाई तो बनती है, और इसके असली हक़दार हैं आप सभी...क़ारीन और चाहने वाले, अच्छे-बुरे वक़्त में साथ निभाने वाले... !
बहुत-बहुत मुबारक, ख़्वातीनो-हज़रात ! आप सबके प्यार और तअव्वुन के बिना यह मक़ाम हासिल हो पाना मुमकिन नहीं था !
आपका
सुरेश स्वप्निल

जोश का इम्तेहान...

जोश  का  इम्तेहान  हो   जाए
आज    ऊंची   उड़ान  हो  जाए

वो:  अगर  मेहेरबान  हो  जाए
हर  शहर  हमज़ुबान  हो  जाए

काश  गुज़रे  चमन  से  बादे-सबा
ग़ुंच:-ए-दिल   जवान  हो  जाए

खोल  दें  दिल  कहीं  सभी  पे  हम
घर  बुतों  की  दुकान  हो  जाए

बर्फ़  पिघले  ज़रा  निगाहों  की
हर   तमन्ना  बयान  हो  जाए

एक  परवाज़  चाहिए  दिल  से
और  सर  आसमान  हो  जाए !

                                                   ( 2013 )

                                             -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: