मैं हूं तू है और ख़ुदा है अपना घर
वाल्दैन की नेक दुआ है अपना घर
टूटे और थके-हारे इंसानों को
उम्मीदों की एक शुआ है अपना घर
शानो-शौक़त इशरत के सामान नहीं
मस्जिद-सा सीधा-सादा है अपना घर
दस्तरख़्वान सजा है जो है हाज़िर है
हर मुफ़लिस पर खुला हुआ है अपना घर
शाम-सुबह जी हल्का करने आते हैं
दीवानों ने देख रखा है अपना घर
एहतराम औ' इश्क़ रवायत है जिसकी
दुनियां में जाना-माना है अपना घर।
व्हाइट हाउस से दस जनपथ तक शर्त्त रही
हर पैमाने पर अच्छा है अपना घर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वाल्दैन: माता-पिता; शुआ: किरण; शानो-शौक़त: ऐश्वर्य और समृद्धि; इशरत: विलासिता; दस्तरख़्वान: सामूहिक भोजन हेतु बिछाया जाने वाला आसन; मुफ़लिस: विपन्न, निर्धन; एहतराम: सम्मान; रवायत: परंपरा।
वाल्दैन की नेक दुआ है अपना घर
टूटे और थके-हारे इंसानों को
उम्मीदों की एक शुआ है अपना घर
शानो-शौक़त इशरत के सामान नहीं
मस्जिद-सा सीधा-सादा है अपना घर
दस्तरख़्वान सजा है जो है हाज़िर है
हर मुफ़लिस पर खुला हुआ है अपना घर
शाम-सुबह जी हल्का करने आते हैं
दीवानों ने देख रखा है अपना घर
एहतराम औ' इश्क़ रवायत है जिसकी
दुनियां में जाना-माना है अपना घर।
व्हाइट हाउस से दस जनपथ तक शर्त्त रही
हर पैमाने पर अच्छा है अपना घर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वाल्दैन: माता-पिता; शुआ: किरण; शानो-शौक़त: ऐश्वर्य और समृद्धि; इशरत: विलासिता; दस्तरख़्वान: सामूहिक भोजन हेतु बिछाया जाने वाला आसन; मुफ़लिस: विपन्न, निर्धन; एहतराम: सम्मान; रवायत: परंपरा।