रुख़ - ए - बहार मेरे शह्र ने नहीं देखा
सिला - ए - इंतज़ार सब्र ने नहीं देखा
तू बदगुमाँ है ग़रीबां पे ज़ुल्म ढाता है
मेरा जलाल तेरे जब्र ने नहीं देखा
फ़रेब-ओ-मक्र की इफ़रात है जहाँ देखो
ये: दौर और किसी उम्र ने नहीं देखा
तू संगदिल तो नहीं है मगर कभी तुझको
मेरे मकां पे शब् - ए -क़द्र ने नहीं देखा
हर एक सिम्त आसमां से नियामत बरसी
सहरा-ए-दिल की तरफ़ अब्र ने नहीं देखा।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल