तेरी ख़्वाहिशों का पता नहीं
कि तू दोस्त बन के मिला नहीं
तू न पीर है न फ़क़ीर है
तेरी मजलिसों में शिफ़ा नहीं
तुझे रौशनी की ख़बर कहां
तू चराग़ बन के जला नहीं
ये मेरी ख़ुदी की मिसाल है
मैं किसी के दर पे झुका नहीं
मैं जहां से दूर निकल गया
मुझे अब किसी से गिला नहीं
जो चला गया वो सनम न था
जो मिला हमें वो ख़ुदा नहीं
मेरा अज़्म है तेरा नूर है
कुछ मांगने को बचा नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़्वाहिशों: इच्छाओं; पीर: सिद्ध व्यक्ति; फ़क़ीर: संत; मजलिसों: सभाओं; शिफ़ा: समाधान;
ख़ुदी: स्वाभिमान; मिसाल: उदाहरण; गिला: असंतोष; सनम: सच्चा प्रेमी; अज़्म: अस्मिता।
कि तू दोस्त बन के मिला नहीं
तू न पीर है न फ़क़ीर है
तेरी मजलिसों में शिफ़ा नहीं
तुझे रौशनी की ख़बर कहां
तू चराग़ बन के जला नहीं
ये मेरी ख़ुदी की मिसाल है
मैं किसी के दर पे झुका नहीं
मैं जहां से दूर निकल गया
मुझे अब किसी से गिला नहीं
जो चला गया वो सनम न था
जो मिला हमें वो ख़ुदा नहीं
मेरा अज़्म है तेरा नूर है
कुछ मांगने को बचा नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़्वाहिशों: इच्छाओं; पीर: सिद्ध व्यक्ति; फ़क़ीर: संत; मजलिसों: सभाओं; शिफ़ा: समाधान;
ख़ुदी: स्वाभिमान; मिसाल: उदाहरण; गिला: असंतोष; सनम: सच्चा प्रेमी; अज़्म: अस्मिता।