ज़रा-से करम को ज़माने लगे
ख़ुदा रोज़ एहसां जताने लगे
नज़र में न थे तो परेशां रहे
नज़र में लिया तो सताने लगे
संवरना हमीं ने सिखाया उन्हें
हमीं को अदाएं सिखाने लगे
इसे रहज़नी के सिवा क्या कहें
कि दिल छीन कर खिलखिलाने लगे
तबीबे-मुहब्बत चुना था जिन्हें
उन्हें ज़ख्मे-दिल भी बहाने लगे
निगाहें बचा कर निकल जाएंगे
अगर हम उन्हें आज़माने लगे
बहुत रोएंगे याद करके हमें
जिन्हें उम्र भर हम दिवाने लगे
बुरा वक़्त है रौशनी के लिए
कि ज़र्रे भी जल्वा दिखाने लगे
न साहिल मिले तो भंवर ही सही
सफ़ीना कहीं तो ठिकाने लगे !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; ज़माने: युगों; एहसां: अनुग्रह; अदाएं: भंगिमाएं; रहज़नी: मार्ग में लूट-मार; तबीबे-मुहब्बत: प्रेम का उपचार करने वाला; ज़ख्मे-दिल: हृदय के घाव; रौशनी: प्रकाश, विवेक; ज़र्रे: सूक्ष्म कण; जल्वा: ईश्वर की भांति प्रकट होना; साहिल: तट; सफ़ीना: नौका।
ख़ुदा रोज़ एहसां जताने लगे
नज़र में न थे तो परेशां रहे
नज़र में लिया तो सताने लगे
संवरना हमीं ने सिखाया उन्हें
हमीं को अदाएं सिखाने लगे
इसे रहज़नी के सिवा क्या कहें
कि दिल छीन कर खिलखिलाने लगे
तबीबे-मुहब्बत चुना था जिन्हें
उन्हें ज़ख्मे-दिल भी बहाने लगे
निगाहें बचा कर निकल जाएंगे
अगर हम उन्हें आज़माने लगे
बहुत रोएंगे याद करके हमें
जिन्हें उम्र भर हम दिवाने लगे
बुरा वक़्त है रौशनी के लिए
कि ज़र्रे भी जल्वा दिखाने लगे
न साहिल मिले तो भंवर ही सही
सफ़ीना कहीं तो ठिकाने लगे !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; ज़माने: युगों; एहसां: अनुग्रह; अदाएं: भंगिमाएं; रहज़नी: मार्ग में लूट-मार; तबीबे-मुहब्बत: प्रेम का उपचार करने वाला; ज़ख्मे-दिल: हृदय के घाव; रौशनी: प्रकाश, विवेक; ज़र्रे: सूक्ष्म कण; जल्वा: ईश्वर की भांति प्रकट होना; साहिल: तट; सफ़ीना: नौका।