दुश्मनों की तरह बात मत कीजिए
तंग अपने ख़यालात मत कीजिए
इश्क़ है कोई जंगे-सियासत नहीं
डर लगे तो मुलाक़ात मत कीजिए
राह रुस्वाइयों तक पहुंचने लगे
इस क़दर सर्द जज़्बात मत कीजिए
क़र्ज़ हम पर वफ़ा का बहुत चढ़ चुका
बस हुआ अब इनायात मत कीजिए
ज़ोम है इक़्तिदारे-वतन का जिन्हें
उन ख़रों से सवालात मत कीजिए
कोई मज्बूर नज़रें चुराने लगे
इस तरह शौक़े-ख़ैरात मत कीजिए
लोग नाहक़ पशेमान हो जाएंगे
बज़्म में ज़िक्रे-सदमात मत कीजिए
दिल में भी ढूंढिए हमको मूसा मियां
कोह चढ़ कर ख़ुराफ़ात मत कीजिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंग : संकीर्ण ; ख़यालात : विचार ; जंगे-सियासत : राजनैतिक संघर्ष ; रुस्वाइयों : लज्जाओं ; सर्द : शीतल ; जज़्बात : भावनाएं ; क़र्ज़ : ऋण ; वफ़ा : निष्ठा ; इनायात : कृपाएं ; ज़ोम : अहंकार ; इक़्तिदारे-वतन : देश की सत्ता ; ख़रों : गधों ; सवालात : प्रश्न-उत्तर, तर्क-वितर्क ; मज्बूर : विवश व्यक्ति ; शौक़े-ख़ैरात : दान करने की प्रवृत्ति / प्रदर्शन / अहंकार ; नाहक़ : व्यर्थ, निरर्थक ; पशेमान : लज्जित ; बज़्म : सभा, समूह ; ज़िक्रे-सदमात : आघातों की चर्चा / उल्लेख ; मूसा मियां : हज़रत मूसा अलैहि सलाम ; कोह : पर्वत ; ख़ुराफ़ात : उपद्रव ।
तंग अपने ख़यालात मत कीजिए
इश्क़ है कोई जंगे-सियासत नहीं
डर लगे तो मुलाक़ात मत कीजिए
राह रुस्वाइयों तक पहुंचने लगे
इस क़दर सर्द जज़्बात मत कीजिए
क़र्ज़ हम पर वफ़ा का बहुत चढ़ चुका
बस हुआ अब इनायात मत कीजिए
ज़ोम है इक़्तिदारे-वतन का जिन्हें
उन ख़रों से सवालात मत कीजिए
कोई मज्बूर नज़रें चुराने लगे
इस तरह शौक़े-ख़ैरात मत कीजिए
लोग नाहक़ पशेमान हो जाएंगे
बज़्म में ज़िक्रे-सदमात मत कीजिए
दिल में भी ढूंढिए हमको मूसा मियां
कोह चढ़ कर ख़ुराफ़ात मत कीजिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंग : संकीर्ण ; ख़यालात : विचार ; जंगे-सियासत : राजनैतिक संघर्ष ; रुस्वाइयों : लज्जाओं ; सर्द : शीतल ; जज़्बात : भावनाएं ; क़र्ज़ : ऋण ; वफ़ा : निष्ठा ; इनायात : कृपाएं ; ज़ोम : अहंकार ; इक़्तिदारे-वतन : देश की सत्ता ; ख़रों : गधों ; सवालात : प्रश्न-उत्तर, तर्क-वितर्क ; मज्बूर : विवश व्यक्ति ; शौक़े-ख़ैरात : दान करने की प्रवृत्ति / प्रदर्शन / अहंकार ; नाहक़ : व्यर्थ, निरर्थक ; पशेमान : लज्जित ; बज़्म : सभा, समूह ; ज़िक्रे-सदमात : आघातों की चर्चा / उल्लेख ; मूसा मियां : हज़रत मूसा अलैहि सलाम ; कोह : पर्वत ; ख़ुराफ़ात : उपद्रव ।