अदालत सीख ले इंसाफ़ करना
गुनाहे-बेगुनाही माफ़ करना
महारत है इसी में आपकी क्या
किसी के दर्द को अज़्आफ़ करना
हुकूमत जाहिलों की ख़ाक जाने
अदीबों की तरह दिल साफ़ करना
तिजारत चाहती है बस्तियों का
बदल कर नाम कोहे क़ाफ़ करना
हज़ारों दोस्तों ने तय किया है
हमारे नाम ग़म औक़ाफ़ करना
किसी दिन आइए तो हम सिखा दें
नफ़स को ख़ुश्बुए-अत्राफ़ करना
हुनर सीखे हज़ारों आपने यूं
न सीखा रूह को शफ़्फ़ाफ़ करना !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : इंसाफ़ : न्याय; गुनाहे-बेगुनाही: निरपराध होने का अपराध; महारत : प्रवीणता; अज़्आफ़ : दो गुना; हुकूमत: शासन, सरकार; जाहिलों : जड़-बुद्धि व्यक्तियों ; ख़ाक : धूलि, यहां अन्यार्थ, अयोग्यता ; अदीबों : साहित्यकारों, सृजन-कर्मियों; तिजारत : व्यावसायिकता ; कोहे क़ाफ़ : काकेशिया का एक पर्वत, जहां का सौंदर्य स्वर्ग-समान माना जाता है; ग़म : दुःख, पीड़ाएं ; औक़ाफ़ : सार्वजनिक उद्देश्य हेतु दान करना ; नफ़स : श्वांस ; ख़ुश्बुए-अत्राफ़ : हर दिशा में फैल जाने वाली सुगंध; हुनर : कौशल ; रूह : आत्मा, मन ; शफ़्फ़ाफ़: निर्मल।
गुनाहे-बेगुनाही माफ़ करना
महारत है इसी में आपकी क्या
किसी के दर्द को अज़्आफ़ करना
हुकूमत जाहिलों की ख़ाक जाने
अदीबों की तरह दिल साफ़ करना
तिजारत चाहती है बस्तियों का
बदल कर नाम कोहे क़ाफ़ करना
हज़ारों दोस्तों ने तय किया है
हमारे नाम ग़म औक़ाफ़ करना
किसी दिन आइए तो हम सिखा दें
नफ़स को ख़ुश्बुए-अत्राफ़ करना
हुनर सीखे हज़ारों आपने यूं
न सीखा रूह को शफ़्फ़ाफ़ करना !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : इंसाफ़ : न्याय; गुनाहे-बेगुनाही: निरपराध होने का अपराध; महारत : प्रवीणता; अज़्आफ़ : दो गुना; हुकूमत: शासन, सरकार; जाहिलों : जड़-बुद्धि व्यक्तियों ; ख़ाक : धूलि, यहां अन्यार्थ, अयोग्यता ; अदीबों : साहित्यकारों, सृजन-कर्मियों; तिजारत : व्यावसायिकता ; कोहे क़ाफ़ : काकेशिया का एक पर्वत, जहां का सौंदर्य स्वर्ग-समान माना जाता है; ग़म : दुःख, पीड़ाएं ; औक़ाफ़ : सार्वजनिक उद्देश्य हेतु दान करना ; नफ़स : श्वांस ; ख़ुश्बुए-अत्राफ़ : हर दिशा में फैल जाने वाली सुगंध; हुनर : कौशल ; रूह : आत्मा, मन ; शफ़्फ़ाफ़: निर्मल।