तिलिस्म-ए-हूर-ओ-मै बेशक़ यहां है
फ़रिश्ते ! ये: बता, मस्जिद कहां है ?
न जाने क्या खिलें गुल ज़िंदगी में
अभी वो: दुश्मन-ए-जां मेहरबां है
किसी दिन फिर जनम लेगा कन्हैया
इसी उम्मीद में सारा जहां है
किसी दिन मंज़िलें होंगी हमारी
अभी मुश्किल सफ़र में कारवां है
तड़पता है जो तेरा नाम ले के
वो: मेरा दिल नहीं, दाग़-ए-निहाँ है
ख़ुदा जो तू नहीं तो ये: बता दे
तेरी ग़र्दिश में क्यूं कर आसमां है ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिलिस्म-ए-हूर-ओ-मै : अप्सराओं और मदिरा का मायाजाल; दाग़-ए-निहाँ : अंतर्मन में छुपा दाग़ ;
ग़र्दिश : परिक्रमा।
फ़रिश्ते ! ये: बता, मस्जिद कहां है ?
न जाने क्या खिलें गुल ज़िंदगी में
अभी वो: दुश्मन-ए-जां मेहरबां है
किसी दिन फिर जनम लेगा कन्हैया
इसी उम्मीद में सारा जहां है
किसी दिन मंज़िलें होंगी हमारी
अभी मुश्किल सफ़र में कारवां है
तड़पता है जो तेरा नाम ले के
वो: मेरा दिल नहीं, दाग़-ए-निहाँ है
ख़ुदा जो तू नहीं तो ये: बता दे
तेरी ग़र्दिश में क्यूं कर आसमां है ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिलिस्म-ए-हूर-ओ-मै : अप्सराओं और मदिरा का मायाजाल; दाग़-ए-निहाँ : अंतर्मन में छुपा दाग़ ;
ग़र्दिश : परिक्रमा।