ग़रज़ है सिर्फ़ इक नज़र-ए-इनायत
ख़ुदारा ! आज इस पर भी सियासत
लरज़ती रूह है तेरी वफ़ा से
न फिर करना कभी ऐसी शरारत
ख़बर है, ख़ाक हो जाएगा आलम
कहाँ ले जाएँ पर दिल की हरारत
हमारी अर्ज़ ठुकराने से पहले
बता देना, करें किसकी इबादत
जबीं मिम्बर से अब उठती ही कब है
डराए जो हमें रोज़-ए-क़यामत !
( 2000 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़रज़: अपेक्षित; नज़र-ए-इनायत: कृपा-दृष्टि; ख़ुदारा: ख़ुदा के लिए;
लरज़ती: कांपती; हरारत: गर्मी, ऊष्मा; अर्ज़: विनती ; जबीं: मस्तक;
मिम्बर : पवित्र का'बा की दिशा का सूचक, मस्जिद में स्थापित
किया जाने वाला पत्थर जिसके समक्ष ख़ुदा को प्रत्यक्ष मान कर
सजदा ( प्रणाम ) करते हैं; रोज़-ए-क़यामत : प्रलय का दिन
ख़ुदारा ! आज इस पर भी सियासत
लरज़ती रूह है तेरी वफ़ा से
न फिर करना कभी ऐसी शरारत
ख़बर है, ख़ाक हो जाएगा आलम
कहाँ ले जाएँ पर दिल की हरारत
हमारी अर्ज़ ठुकराने से पहले
बता देना, करें किसकी इबादत
जबीं मिम्बर से अब उठती ही कब है
डराए जो हमें रोज़-ए-क़यामत !
( 2000 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़रज़: अपेक्षित; नज़र-ए-इनायत: कृपा-दृष्टि; ख़ुदारा: ख़ुदा के लिए;
लरज़ती: कांपती; हरारत: गर्मी, ऊष्मा; अर्ज़: विनती ; जबीं: मस्तक;
मिम्बर : पवित्र का'बा की दिशा का सूचक, मस्जिद में स्थापित
किया जाने वाला पत्थर जिसके समक्ष ख़ुदा को प्रत्यक्ष मान कर
सजदा ( प्रणाम ) करते हैं; रोज़-ए-क़यामत : प्रलय का दिन