तेरे नूर का चेहरा हूँ
दश्त में नन्हा पौधा हूँ
पढ़ ले मुझे गीता की तरह
कैसे कहूँ के: मैं क्या हूँ
याद न कर इस वक़्त मुझे
मैं सज्दे में बैठा हूँ
गोश:-ए-दिल में ढूंढ ज़रा
अपने घर कब रहता हूँ
मैं न समझ पाऊंगा तुझे
ख़ुद को ही कब समझा हूँ
तोड़ न दे उम्मीद-ए-वफ़ा
नाज़ुक शीशे - जैसा हूँ
तेरे नूर की बात ही क्या
क़तरा-क़तरा पीता हूँ।
(2011)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तेरे नूर का चेहरा :ख़ुदा , निराकार ब्रह्म के प्रकाश का साकार रूप; दश्त: वन ; सज्दे में: ध्यान-मुद्रा में
गोश:- कोना , क़तरा : बूँद
दश्त में नन्हा पौधा हूँ
पढ़ ले मुझे गीता की तरह
कैसे कहूँ के: मैं क्या हूँ
याद न कर इस वक़्त मुझे
मैं सज्दे में बैठा हूँ
गोश:-ए-दिल में ढूंढ ज़रा
अपने घर कब रहता हूँ
मैं न समझ पाऊंगा तुझे
ख़ुद को ही कब समझा हूँ
तोड़ न दे उम्मीद-ए-वफ़ा
नाज़ुक शीशे - जैसा हूँ
तेरे नूर की बात ही क्या
क़तरा-क़तरा पीता हूँ।
(2011)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तेरे नूर का चेहरा :ख़ुदा , निराकार ब्रह्म के प्रकाश का साकार रूप; दश्त: वन ; सज्दे में: ध्यान-मुद्रा में
गोश:- कोना , क़तरा : बूँद
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