हम वफ़ा का ख़ामियाज़ा भर रहे हैं आजकल
रोज़ वो: हमसे तक़ाज़ा कर रहे हैं आजकल
दोस्त कब तक दें सहारा वक़्त किसके पास है
लोग हर इल्ज़ाम हम पे धर रहे हैं आजकल
इस बरस दो-चार दिन में ही बहारें चल बसीं
फिर हरे पत्ते हवा से झर रहे हैं आजकल
भूख से बेज़ार बच्चों को खिलाएं भी तो क्या
लोग अपने फ़र्ज़ से भी डर रहे हैं आजकल
सुर्ख़ियों में है निज़ामुलमुल्क का ताज़ा बयां
'तिफ़्ल खाने की इज़ा से मर रहे हैं आजकल' !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ामियाज़ा: क्षति-पूर्त्ति; तक़ाज़ा: स्मरण कराना; बेज़ार: व्याकुल; फ़र्ज़: कर्त्तव्य;
निज़ामुलमुल्क: देश का प्रशासक, राजा; तिफ़्ल: बच्चे; इज़ा: बीमारी ।
रोज़ वो: हमसे तक़ाज़ा कर रहे हैं आजकल
दोस्त कब तक दें सहारा वक़्त किसके पास है
लोग हर इल्ज़ाम हम पे धर रहे हैं आजकल
इस बरस दो-चार दिन में ही बहारें चल बसीं
फिर हरे पत्ते हवा से झर रहे हैं आजकल
भूख से बेज़ार बच्चों को खिलाएं भी तो क्या
लोग अपने फ़र्ज़ से भी डर रहे हैं आजकल
सुर्ख़ियों में है निज़ामुलमुल्क का ताज़ा बयां
'तिफ़्ल खाने की इज़ा से मर रहे हैं आजकल' !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ामियाज़ा: क्षति-पूर्त्ति; तक़ाज़ा: स्मरण कराना; बेज़ार: व्याकुल; फ़र्ज़: कर्त्तव्य;
निज़ामुलमुल्क: देश का प्रशासक, राजा; तिफ़्ल: बच्चे; इज़ा: बीमारी ।