चांदनी का सफ़र देखिए तो सही
नीम-रौशन शहर देखिए तो सही
लौट कर आ गई है हमारी तरफ़
मंज़िलों की नज़र देखिए तो सही
बात ही बात में हो रही है ग़ज़ल
दोस्ती का असर देखिए तो सही
आप ही इब्तिदा, आप ही इंतेहा
आप ही बे-ख़बर देखिए तो सही
ये: सिला शायरी ने दिया है हमें
हो गए दर-ब-दर, देखिए तो सही
आपके ज़िक्र से दिल महकने लगा
ये: अरूज़े-बहर, देखिए तो सही
मौत को आश्ना कर लिया जिस्म ने
क़िस्स:-ए-मुख़्तसर देखिए तो सही !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नीम-रौशन: अर्द्ध-प्रकाशित; इब्तिदा: आरंभ; इंतेहा: सीमा, अंत; बे-ख़बर: समाचार/ सूचना से वंचित;
सिला: प्रतिफल; दर-ब-दर: बेघर; अरूज़े-बहर: छंद-सौन्दर्य; आश्ना: साथी; क़िस्स:-ए-मुख़्तसर: संक्षित कथा ।
नीम-रौशन शहर देखिए तो सही
लौट कर आ गई है हमारी तरफ़
मंज़िलों की नज़र देखिए तो सही
बात ही बात में हो रही है ग़ज़ल
दोस्ती का असर देखिए तो सही
आप ही इब्तिदा, आप ही इंतेहा
आप ही बे-ख़बर देखिए तो सही
ये: सिला शायरी ने दिया है हमें
हो गए दर-ब-दर, देखिए तो सही
आपके ज़िक्र से दिल महकने लगा
ये: अरूज़े-बहर, देखिए तो सही
मौत को आश्ना कर लिया जिस्म ने
क़िस्स:-ए-मुख़्तसर देखिए तो सही !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नीम-रौशन: अर्द्ध-प्रकाशित; इब्तिदा: आरंभ; इंतेहा: सीमा, अंत; बे-ख़बर: समाचार/ सूचना से वंचित;
सिला: प्रतिफल; दर-ब-दर: बेघर; अरूज़े-बहर: छंद-सौन्दर्य; आश्ना: साथी; क़िस्स:-ए-मुख़्तसर: संक्षित कथा ।