मिज़ाजे ज़माना हमें तोड़ देगा
तेरा आज़माना हमें तोड़ देगा
निगाहें मिलाना ज़रूरी नहीं है
निगाहें चुराना हमें तोड़ देगा
नज़र में बनाए रखें तय जगह पर
उठाना गिराना हमें तोड़ देगा
ख़बर है हमें तेरी मस्रूफ़ियत की
मगर अब बहाना हमें तोड़ देगा
सहारा वो बेशक़ न दें मुफ़लिसी में
तमाशा बनाना हमें तोड़ देगा
अगर मश्क़ कम है तो सीना खुला है
वफ़ा पर निशाना हमें तोड़ देगा
बग़ावत के ऐलान से ऐन पहले
तेरा टूट जाना हमें तोड़ देगा !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मिज़ाजे ज़माना : समय/स्वभाव; मस्रूफ़ियत : व्यस्तता; मुफ़लिसी : कठिन समय, निर्धनता; मश्क़ : अभ्यास; वफ़ा : आस्था; बग़ावत : विद्रोह; ऐलान : घोषणा; ऐन : ठीक ।
तेरा आज़माना हमें तोड़ देगा
निगाहें मिलाना ज़रूरी नहीं है
निगाहें चुराना हमें तोड़ देगा
नज़र में बनाए रखें तय जगह पर
उठाना गिराना हमें तोड़ देगा
ख़बर है हमें तेरी मस्रूफ़ियत की
मगर अब बहाना हमें तोड़ देगा
सहारा वो बेशक़ न दें मुफ़लिसी में
तमाशा बनाना हमें तोड़ देगा
अगर मश्क़ कम है तो सीना खुला है
वफ़ा पर निशाना हमें तोड़ देगा
बग़ावत के ऐलान से ऐन पहले
तेरा टूट जाना हमें तोड़ देगा !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मिज़ाजे ज़माना : समय/स्वभाव; मस्रूफ़ियत : व्यस्तता; मुफ़लिसी : कठिन समय, निर्धनता; मश्क़ : अभ्यास; वफ़ा : आस्था; बग़ावत : विद्रोह; ऐलान : घोषणा; ऐन : ठीक ।