लोग क्या-क्या कमाल करते हैं
मुफ़लिसों से सवाल करते हैं
हम बुज़ुर्गों के बस की बात नहीं
काम जो नौनिहाल करते हैं
बदज़ुबानी हमें भी आती है
बस, अदब का ख़याल करते हैं
हुक्मरां सिर्फ़ जेब भरते हैं
काम सारा दलाल करते हैं
वक़्त हर दिन बुरा नहीं होता
आप क्यूं कर मलाल करते हैं
दोस्त देखे नए ज़माने के
दोस्त को ही हलाल करते हैं
दर्द हमसे कहें तो बात बने
बुतों से अर्ज़े-हाल करते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: कमाल: अजीब, अटपटे काम; मुफ़लिसों: निर्धनों; सवाल: मांग, कुछ पाने का प्रयास; नौनिहाल: बालक; बदज़ुबानी: कटु-भाषिता; अदब: शिष्टाचार; हुक्मरां: शासनाधिकारी; मलाल: विषाद; हलाल: धर्मानुमत विधि से गला काटना; बुतों: मूर्त्तियों; अर्ज़े-हाल: स्थिति का वर्णन।
मुफ़लिसों से सवाल करते हैं
हम बुज़ुर्गों के बस की बात नहीं
काम जो नौनिहाल करते हैं
बदज़ुबानी हमें भी आती है
बस, अदब का ख़याल करते हैं
हुक्मरां सिर्फ़ जेब भरते हैं
काम सारा दलाल करते हैं
वक़्त हर दिन बुरा नहीं होता
आप क्यूं कर मलाल करते हैं
दोस्त देखे नए ज़माने के
दोस्त को ही हलाल करते हैं
दर्द हमसे कहें तो बात बने
बुतों से अर्ज़े-हाल करते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: कमाल: अजीब, अटपटे काम; मुफ़लिसों: निर्धनों; सवाल: मांग, कुछ पाने का प्रयास; नौनिहाल: बालक; बदज़ुबानी: कटु-भाषिता; अदब: शिष्टाचार; हुक्मरां: शासनाधिकारी; मलाल: विषाद; हलाल: धर्मानुमत विधि से गला काटना; बुतों: मूर्त्तियों; अर्ज़े-हाल: स्थिति का वर्णन।