उठाना-गिराना रईसों की बातें
ख़ुलूसो-मुहब्बत ग़रीबों की बातें
सियासत तुम्हारी महज़ क़त्लो-ग़ारत
अदब-मौसिक़ी-फ़न शरीफ़ों की बातें
तुम्हारे ज़ेह् न तक नहीं आ सकेंगी
ये बारीक़ बातें, अदीबों की बातें
न दीजे हमें आप जागीर-ओ-मनसब
हमारा वज़ीफ़ा हसीनों की बातें
बह्र मुख़्तसर-सी कहां तक संभाले
ग़मे-आशिक़ी के महीनों की बातें
करें शुक्रिया किस तरह आपका हम
सुनी ग़ौर से कमनसीबों की बातें
हमें भी कहां रास आईं किसी दिन
किताबे-ख़ुदा की, नसीबों की बातें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुलूसो-मुहब्बत: आत्मीयता और प्रेम; सियासत: राजनीति; महज़: मात्र; क़त्लो-ग़ारत: हत्या और मार-काट; अदब-मौसिक़ी-फ़न: साहित्य, संगीत और कला; ज़ेह् न : मानसिकता, मस्तिष्क; बारीक़: सूक्ष्म;अदीबों: साहित्यकारों;
जागीर-ओ-मनसब: राज्य से मिली कर-मुक्त भूमि और उच्चाधिकार वाला पद; वज़ीफ़ा: निर्वाह-वृत्ति; बह्र: छंद; मुख़्तसर: संक्षिप्त; ग़मे-आशिक़ी: प्रेम के दु:ख; कमनसीबों: भाग्यहीनों; किताबे-ख़ुदा: ईश्वरीय पुस्तक, पवित्र क़ुर'आन; भाग्य, भाग्यवाद।
ख़ुलूसो-मुहब्बत ग़रीबों की बातें
सियासत तुम्हारी महज़ क़त्लो-ग़ारत
अदब-मौसिक़ी-फ़न शरीफ़ों की बातें
तुम्हारे ज़ेह् न तक नहीं आ सकेंगी
ये बारीक़ बातें, अदीबों की बातें
न दीजे हमें आप जागीर-ओ-मनसब
हमारा वज़ीफ़ा हसीनों की बातें
बह्र मुख़्तसर-सी कहां तक संभाले
ग़मे-आशिक़ी के महीनों की बातें
करें शुक्रिया किस तरह आपका हम
सुनी ग़ौर से कमनसीबों की बातें
हमें भी कहां रास आईं किसी दिन
किताबे-ख़ुदा की, नसीबों की बातें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुलूसो-मुहब्बत: आत्मीयता और प्रेम; सियासत: राजनीति; महज़: मात्र; क़त्लो-ग़ारत: हत्या और मार-काट; अदब-मौसिक़ी-फ़न: साहित्य, संगीत और कला; ज़ेह् न : मानसिकता, मस्तिष्क; बारीक़: सूक्ष्म;अदीबों: साहित्यकारों;
जागीर-ओ-मनसब: राज्य से मिली कर-मुक्त भूमि और उच्चाधिकार वाला पद; वज़ीफ़ा: निर्वाह-वृत्ति; बह्र: छंद; मुख़्तसर: संक्षिप्त; ग़मे-आशिक़ी: प्रेम के दु:ख; कमनसीबों: भाग्यहीनों; किताबे-ख़ुदा: ईश्वरीय पुस्तक, पवित्र क़ुर'आन; भाग्य, भाग्यवाद।