ये: एहतरामे-वफ़ा है कि कम नहीं होता
अजीब मर्ज़ लगा है कि कम नहीं होता
इधर-उधर के कई ग़म उठा लिए सर पर
मगर ये: बार बड़ा है कि कम नहीं होता
बिखर रहा है मेरा ज़ह्र गर्म झोंकों से
बग़ावतों का नशा है कि कम नहीं होता
तेरे रसूख़ के क़िस्से कभी नहीं थमते
इधर वो: रंग चढ़ा है कि कम नहीं होता
कहां कहां से लहू रिस गया रिआया का
फ़ुसूं-ए-शाह नया है कि कम नहीं होता
अभी तो दाग़ हज़ारों जबीं पे उभरेंगे
ये: शौक़े-क़त्ल बुरा है कि कम नहीं होता
तेरा ग़ुरूरे-अना है कि सर से ऊपर है
मेरा ये: ख़ौफ़े-ख़ुदा है कि कम नहीं होता !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतरामे-वफ़ा : आस्था के प्रति सम्मान; अजीब : विचित्र; मर्ज़ : रोग; ग़म : शोक, दुःख; बार : बोझ, भार; ज़ह्र : विष; बग़ावतों : विद्रोहों; नशा : उन्माद; रसूख़ : प्रभाव; फ़ुसूं : जादू, मायाजाल; दाग़ : कलंक; जबीं : मस्तक; शौक़े-क़त्ल : हत्या की अभिरुचि; ग़ुरूरे-अना : अहंकार का गर्व; ख़ौफ़े-ख़ुदा : ईश्वर का भय।
अजीब मर्ज़ लगा है कि कम नहीं होता
इधर-उधर के कई ग़म उठा लिए सर पर
मगर ये: बार बड़ा है कि कम नहीं होता
बिखर रहा है मेरा ज़ह्र गर्म झोंकों से
बग़ावतों का नशा है कि कम नहीं होता
तेरे रसूख़ के क़िस्से कभी नहीं थमते
इधर वो: रंग चढ़ा है कि कम नहीं होता
कहां कहां से लहू रिस गया रिआया का
फ़ुसूं-ए-शाह नया है कि कम नहीं होता
अभी तो दाग़ हज़ारों जबीं पे उभरेंगे
ये: शौक़े-क़त्ल बुरा है कि कम नहीं होता
तेरा ग़ुरूरे-अना है कि सर से ऊपर है
मेरा ये: ख़ौफ़े-ख़ुदा है कि कम नहीं होता !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतरामे-वफ़ा : आस्था के प्रति सम्मान; अजीब : विचित्र; मर्ज़ : रोग; ग़म : शोक, दुःख; बार : बोझ, भार; ज़ह्र : विष; बग़ावतों : विद्रोहों; नशा : उन्माद; रसूख़ : प्रभाव; फ़ुसूं : जादू, मायाजाल; दाग़ : कलंक; जबीं : मस्तक; शौक़े-क़त्ल : हत्या की अभिरुचि; ग़ुरूरे-अना : अहंकार का गर्व; ख़ौफ़े-ख़ुदा : ईश्वर का भय।