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शुक्रवार, 22 मई 2015

कोई नादिर, कोई चंगेज़...

तुम्हारी  बेनियाज़ी  से  अगर  दिल  टूट  जाए,  तो ?
कोई  कमबख़्त  दीवाना  हमारे  सर  को  आए  तो ?

मक़ासिद  आपके  ज़ाहिर  नहीं  हैं  आज  भी  सब  पर
नियत  पर  आपकी  कोई  कभी  उंगली  उठाए  तो ?

हमें  शक़ तो  नहीं  है  दोस्तों  की  दिलनवाज़ी  पर
मगर  कोई  कहीं  हमको  अकेले  में  बुलाए,  तो ?

कहो  तो  आज  ही  कर  लें  गरेबां  चाक  हम  अपना
हमारी  याद  आ  आ  कर  तुम्हें  कल  को  सताए,  तो ?

कोई  नादिर  कोई  चंगेज़  हो  तो  सब्र  भी  कर  लें
शहंशाहे-वतन  ही  मुल्क  की   दौलत  लुटाए,  तो  ?

हमें  भी  कम  नहीं  है  शौक़  यूं  सज्दागुज़ारी  का
ख़ुदा  लेकिन  अदावत  का  कभी  रिश्ता  निभाए,  तो  ?

ख़ुदा  जिस  रोज़  चाहे  बंदगी  का  इम्तिहां  मांगे
अगर  बंदा  ख़ुदा  की  हैसियत  को  आज़माए,  तो  ?

                                                                                               (2015)

                                                                                     -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: बेनियाज़ी: उपेक्षा; कमबख़्त  दीवाना: अभागा प्रेमी; सर  को  आए: पीछे पड़े; मक़ासिद: मक़सद का बहुवचन, उद्देश्य; ज़ाहिर: प्रकट; नियत: आशय; शक़: संदेह; दिलनवाज़ी: मैत्री; गरेबां: कंठ; चाक: काट लेना;  नादिर: ईरान का एक मध्य-युगीन आक्रामक शासक, लुटेरा, जिसने दिल्ली को लूटा था; चंगेज़: चंगेज़ ख़ान, मंगोलिया का शासक जिसे इतिहास का क्रूरतम आक्रमणकारी, महान योद्धा, लेकिन लुटेरा राजा माना जाता है; सब्र: संतोष, धैर्य; सज्दागुज़ारी: नतमस्तक होकर प्रार्थना करना; अदावत: शत्रुता; बंदगी: भक्ति; हैसियत: प्रास्थिति ।