लोग न जाने क्या क्या बातें करते हैं
हम तो लब की ज़ुम्बिश से भी डरते हैं
तंज़ीमें मज़हब को खेल समझती हैं
जाहिल इन्सां आपस में लड़ मरते हैं
हम मुफ़लिस तो ईंधन हैं सरमाए का
ज़िंदा रहने का जुर्माना भरते हैं
बेबस अक्सर चट्टानी दिल रखते हैं
अपने आगे तूफ़ां कहां ठहरते हैं
ज़र्फ़ समंदर का जब भी कम होता है
साहिल के सीने पे क़हर गुज़रते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब की ज़ुम्बिश: होंठ की थिरकन; तंज़ीमें: राजनैतिक दल, संगठन; मज़हब: धर्म; जाहिल: अनपढ़, अल्प-बुद्धि;
मुफ़लिस: निर्धन; सरमाए: पूँजी; जुर्माना: अर्थ-दण्ड; ज़र्फ़: गहराई, धैर्य; साहिल: तटबंध।
हम तो लब की ज़ुम्बिश से भी डरते हैं
तंज़ीमें मज़हब को खेल समझती हैं
जाहिल इन्सां आपस में लड़ मरते हैं
हम मुफ़लिस तो ईंधन हैं सरमाए का
ज़िंदा रहने का जुर्माना भरते हैं
बेबस अक्सर चट्टानी दिल रखते हैं
अपने आगे तूफ़ां कहां ठहरते हैं
ज़र्फ़ समंदर का जब भी कम होता है
साहिल के सीने पे क़हर गुज़रते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब की ज़ुम्बिश: होंठ की थिरकन; तंज़ीमें: राजनैतिक दल, संगठन; मज़हब: धर्म; जाहिल: अनपढ़, अल्प-बुद्धि;
मुफ़लिस: निर्धन; सरमाए: पूँजी; जुर्माना: अर्थ-दण्ड; ज़र्फ़: गहराई, धैर्य; साहिल: तटबंध।