ज़िक्र मत छेड़िए हसीनों का
रंग धुल जाएगा जहीनों का
वक़्त बेवक़्त याद मत कीजे
ज़ख़्म खुल जाएगा महीनों का
शायरी दिल दिमाग़ की शै है
यह करिश्मा नहीं मशीनों का
ख़ूबसूरत लिबास मत देखो
सांप है सांप आस्तीनों का
रोज़ तकरीर ताजदारों की
रोज़ मजमा तमाशबीनों का
दंग है आज फ़ौजे-शाही भी
देख कर हौसला कमीनों का
जान गिर्दाब में गई जिसकी
नाख़ुदा था कई सफ़ीनों का
बढ़ रहा है ज़मीने-मोमिन से
फ़ायदा अर्श के मकीनों का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़िक्र: प्रसंग; ज़हीनों: बुद्धिजीवियों, विद्वानों; वक़्त बेवक़्त: समय-असमय; ज़ख़्म: घाव; शै: वस्तु; करिश्मा:चमत्कार;
लिबास: परिधान; तकरीर: भाषण; ताजदारों: शासकों; मजमा: भीड़; तमाशबीनों: दर्शकों; दंग:चकित; फ़ौजे-शाही: राजकीय सेना; हौसला:उत्साह, वीरता; कमीनों: मज़दूर-कामगार; गिर्दाब: भंवर; नाख़ुदा: मल्लाह; सफ़ीनों: नावों; ज़मीने-मोमिन:भक्तों/ आस्तिकों की भूमि; अर्श:आकाश, स्वर्ग; मकीनों:निवासियों।
रंग धुल जाएगा जहीनों का
वक़्त बेवक़्त याद मत कीजे
ज़ख़्म खुल जाएगा महीनों का
शायरी दिल दिमाग़ की शै है
यह करिश्मा नहीं मशीनों का
ख़ूबसूरत लिबास मत देखो
सांप है सांप आस्तीनों का
रोज़ तकरीर ताजदारों की
रोज़ मजमा तमाशबीनों का
दंग है आज फ़ौजे-शाही भी
देख कर हौसला कमीनों का
जान गिर्दाब में गई जिसकी
नाख़ुदा था कई सफ़ीनों का
बढ़ रहा है ज़मीने-मोमिन से
फ़ायदा अर्श के मकीनों का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़िक्र: प्रसंग; ज़हीनों: बुद्धिजीवियों, विद्वानों; वक़्त बेवक़्त: समय-असमय; ज़ख़्म: घाव; शै: वस्तु; करिश्मा:चमत्कार;
लिबास: परिधान; तकरीर: भाषण; ताजदारों: शासकों; मजमा: भीड़; तमाशबीनों: दर्शकों; दंग:चकित; फ़ौजे-शाही: राजकीय सेना; हौसला:उत्साह, वीरता; कमीनों: मज़दूर-कामगार; गिर्दाब: भंवर; नाख़ुदा: मल्लाह; सफ़ीनों: नावों; ज़मीने-मोमिन:भक्तों/ आस्तिकों की भूमि; अर्श:आकाश, स्वर्ग; मकीनों:निवासियों।