एक मिसरा भी न हो जब पास में
क्या ग़ज़ल कहिए हुज़ूरे-ख़ास में
सिर्फ़ बिस्मिल जानते हैं इश्क़ के
क्या मज़ा है दर्द के एहसास में
आए हैं वो आज पुरशिस के लिए
इक तबस्सुम है नसीबे-यास में
कल यहां कुछ और मुंसिफ़ बिक गए
अब कहां इंसाफ़ इस इजलास में
आपका भी फ़र्ज़ है, कुछ कीजिए
दूरियां पैदा न हों इख़्लास में
नाम मिट तो जाएगा दिल से मगर
सलवटें पड़ जाएंगी क़िरतास में
दूर करना चाहते हैं वो हमें
बाल हो जैसे दिले-अलमास में !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मिसरा: पंक्ति; हुज़ूरे-ख़ास: विशिष्ट जन की गोष्ठी, दरबार; बिस्मिल: घायल; एहसास: अनुभूति; पुरशिस: हाल-चाल पूछना; तबस्सुम: स्मित, मुस्कान; नसीबे-यास: निराश व्यक्ति का प्रारब्ध; मुंसिफ़: न्यायाधीश; इजलास: अदालत; इख़्लास: मित्रता;
क़िरतास: काग़ज़; बाल: दोष, केश जैसी दरार; दिले-अलमास: हीरे का हृदय, मध्य भाग।
क्या ग़ज़ल कहिए हुज़ूरे-ख़ास में
सिर्फ़ बिस्मिल जानते हैं इश्क़ के
क्या मज़ा है दर्द के एहसास में
आए हैं वो आज पुरशिस के लिए
इक तबस्सुम है नसीबे-यास में
कल यहां कुछ और मुंसिफ़ बिक गए
अब कहां इंसाफ़ इस इजलास में
आपका भी फ़र्ज़ है, कुछ कीजिए
दूरियां पैदा न हों इख़्लास में
नाम मिट तो जाएगा दिल से मगर
सलवटें पड़ जाएंगी क़िरतास में
दूर करना चाहते हैं वो हमें
बाल हो जैसे दिले-अलमास में !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मिसरा: पंक्ति; हुज़ूरे-ख़ास: विशिष्ट जन की गोष्ठी, दरबार; बिस्मिल: घायल; एहसास: अनुभूति; पुरशिस: हाल-चाल पूछना; तबस्सुम: स्मित, मुस्कान; नसीबे-यास: निराश व्यक्ति का प्रारब्ध; मुंसिफ़: न्यायाधीश; इजलास: अदालत; इख़्लास: मित्रता;
क़िरतास: काग़ज़; बाल: दोष, केश जैसी दरार; दिले-अलमास: हीरे का हृदय, मध्य भाग।