मंज़ूर है दीदार तुम्हारा हिजाब में
फ़ुर्सत हो तो आ जाओ किसी रोज़ ख़्वाब में
आशिक़ की तिश्नगी का आलम न पूछिए
आब-ए-हयात देख रहा है सराब में
नासेह हैं आप कीजिए खुल के नसीहतें
ग़फ़लत मगर बहुत है आपके हिसाब में
बांटेंगे इत्र-ओ-रेवड़ी मस्जिद में आज हम
आदाब कह रहे हैं वो: हमको जवाब में
वाइज़ को कर के मेहमां पछता रहे हैं हम
मदहोश हो गए हैं ज़रा-सी शराब में
आमाल पाक-साफ़ हैं शायर हुए तो क्या
धब्बा न ढूंढिए हुज़ूर आफ़ताब में
पाया न एक लफ़्ज़ कहीं इश्क़ के ख़िलाफ़
उम्मीद की शुआ है ख़ुदा की किताब में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हिजाब: पर्दा; तिश्नगी: प्यास; आलम: तीव्रता; आब-ए-हयात: अमृत, जीवन-जल; सराब: मरु-जल, मरु:स्थल में सूर्य की किरणों के आंतरिक परावर्त्तन के कारण दिखाई पड़ने वाला पानी ; नासेह: नसीहत करने वाला,छिद्रान्वेषी; ग़फ़लत: गड़बड़, संशय; वाइज़: धर्मोपदेशक; मदहोश: मद्योन्मत्त; आमाल: आचरण;पाक: पवित्र; साफ़: उज्ज्वल; आफ़ताब: सूर्य; लफ़्ज़: शब्द; शुआ: किरण; ख़ुदा की किताब: पवित्र क़ुर'आन।
फ़ुर्सत हो तो आ जाओ किसी रोज़ ख़्वाब में
आशिक़ की तिश्नगी का आलम न पूछिए
आब-ए-हयात देख रहा है सराब में
नासेह हैं आप कीजिए खुल के नसीहतें
ग़फ़लत मगर बहुत है आपके हिसाब में
बांटेंगे इत्र-ओ-रेवड़ी मस्जिद में आज हम
आदाब कह रहे हैं वो: हमको जवाब में
वाइज़ को कर के मेहमां पछता रहे हैं हम
मदहोश हो गए हैं ज़रा-सी शराब में
आमाल पाक-साफ़ हैं शायर हुए तो क्या
धब्बा न ढूंढिए हुज़ूर आफ़ताब में
पाया न एक लफ़्ज़ कहीं इश्क़ के ख़िलाफ़
उम्मीद की शुआ है ख़ुदा की किताब में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हिजाब: पर्दा; तिश्नगी: प्यास; आलम: तीव्रता; आब-ए-हयात: अमृत, जीवन-जल; सराब: मरु-जल, मरु:स्थल में सूर्य की किरणों के आंतरिक परावर्त्तन के कारण दिखाई पड़ने वाला पानी ; नासेह: नसीहत करने वाला,छिद्रान्वेषी; ग़फ़लत: गड़बड़, संशय; वाइज़: धर्मोपदेशक; मदहोश: मद्योन्मत्त; आमाल: आचरण;पाक: पवित्र; साफ़: उज्ज्वल; आफ़ताब: सूर्य; लफ़्ज़: शब्द; शुआ: किरण; ख़ुदा की किताब: पवित्र क़ुर'आन।