दिल जलाते हैं तो अश्कों से बुझा देते हैं
क्या मुदावा है कि तकलीफ़ बढ़ा देते हैं
ख़ूब है बज़्मे-सुख़न ख़ूब क़वायद उनके
शम्'.अ आती है तो महफ़िल से उठा देते हैं
वो ग़रीबों को सरे-आम जला कर ज़िंदा
नाम फिर ख़ुद का शहीदों में लिखा देते हैं
कर दिया मुल्क दरिंदों के हवाले ऐसे
बात हक़ की हो तो गर्दन ही दबा देते हैं
नेक आमाल रहे शाह तो हंसते हंसते
लोग तो मुल्क पे ईमान लुटा देते हैं
सल्तनत आज है कल और किसी की होगी
वक़्त बदले तो फ़रिश्ते भी दग़ा देते हैं
वक़्त ऐसा भी नहीं है कि दुआएं मांगें
पीरो-मुर्शिद भी तो एहसान जता देते हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अश्कों: आंसुओं; मुदावा : उपचार ; बज़्मे-सुख़न:सृजन गोष्ठी; क़वायद : नियमावली; शम्'.अ : यहां अर्थ बारी ; महफ़िल: सभा ; सरे-आम: सबके सामने; दरिंदों: हिंसक पशुओं; हक़ : अधिकार, न्याय; नेक आमाल:सदाचारी; ईमान : आस्था; सल्तनत: राज्य;
फ़रिश्ते: देवदूत; दग़ा: द्रोह; पीरो-मुर्शिद: संत-महंत; एहसान : अनुग्रह ।
क्या मुदावा है कि तकलीफ़ बढ़ा देते हैं
ख़ूब है बज़्मे-सुख़न ख़ूब क़वायद उनके
शम्'.अ आती है तो महफ़िल से उठा देते हैं
वो ग़रीबों को सरे-आम जला कर ज़िंदा
नाम फिर ख़ुद का शहीदों में लिखा देते हैं
कर दिया मुल्क दरिंदों के हवाले ऐसे
बात हक़ की हो तो गर्दन ही दबा देते हैं
नेक आमाल रहे शाह तो हंसते हंसते
लोग तो मुल्क पे ईमान लुटा देते हैं
सल्तनत आज है कल और किसी की होगी
वक़्त बदले तो फ़रिश्ते भी दग़ा देते हैं
वक़्त ऐसा भी नहीं है कि दुआएं मांगें
पीरो-मुर्शिद भी तो एहसान जता देते हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अश्कों: आंसुओं; मुदावा : उपचार ; बज़्मे-सुख़न:सृजन गोष्ठी; क़वायद : नियमावली; शम्'.अ : यहां अर्थ बारी ; महफ़िल: सभा ; सरे-आम: सबके सामने; दरिंदों: हिंसक पशुओं; हक़ : अधिकार, न्याय; नेक आमाल:सदाचारी; ईमान : आस्था; सल्तनत: राज्य;
फ़रिश्ते: देवदूत; दग़ा: द्रोह; पीरो-मुर्शिद: संत-महंत; एहसान : अनुग्रह ।