ग़म न कीजे हक़ मुहब्बत का अदा हो जाएगा
आप ख़ुश हों सर मेरा तन से जुदा हो जाएगा
हो रहे उनसे जुदाई मिट चुकीं आराईशें
अब डरा के क्या मिलेगा और क्या हो जाएगा
कर लिया पत्थर कलेजा अब न कीजे पुर्शिसें
बेवजह ज़ख्म-ए-निहाँ फिर से हरा हो जाएगा
है यक़ीं हमको हमारी कोशिश -ओ-तदबीर पे
चार दिन में वो: सितमगर बावफ़ा हो जाएगा
बैठे-ठाले क्यूं करें हम तिब्बियों की मिन्नतें
दर्द ख़ुद ही एक दिन बढ़ कर दवा हो जाएगा
देख लेंगे आप भी क्या चीज़ हैं हम ख़ुद-ब-ख़ुद
आपसे जिस दिन हमारा सिलसिला हो जाएगा
गर दुआ-ए-मग़फ़िरत में आप ही सफ़ में न हों
तो सफ़र मुल्क-ए-अदम का बे-मज़ा हो जाएगा!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आराईशें : अभिलाषाएं; पुर्शिसें: सहानुभूति प्रकट करना; ज़ख्म-ए-निहाँ : अंतर्मन का घाव;
कोशिश -ओ-तदबीर: प्रयास एवं युक्ति; सितमगर: यातना देने वाला; बावफ़ा: निर्वाह करने वाला;
तिब्बी: हकीम; मिन्नत: मान-मनौव्वल; सिलसिला: आत्मीय सम्बंध; दुआ-ए-मग़फ़िरत: अर्थी
उठने के पूर्व मृतात्मा की मुक्ति हेतु की जाने वाली प्रार्थना; सफ़: पंक्ति; मुल्क-ए-अदम: परलोक।
आप ख़ुश हों सर मेरा तन से जुदा हो जाएगा
हो रहे उनसे जुदाई मिट चुकीं आराईशें
अब डरा के क्या मिलेगा और क्या हो जाएगा
कर लिया पत्थर कलेजा अब न कीजे पुर्शिसें
बेवजह ज़ख्म-ए-निहाँ फिर से हरा हो जाएगा
है यक़ीं हमको हमारी कोशिश -ओ-तदबीर पे
चार दिन में वो: सितमगर बावफ़ा हो जाएगा
बैठे-ठाले क्यूं करें हम तिब्बियों की मिन्नतें
दर्द ख़ुद ही एक दिन बढ़ कर दवा हो जाएगा
देख लेंगे आप भी क्या चीज़ हैं हम ख़ुद-ब-ख़ुद
आपसे जिस दिन हमारा सिलसिला हो जाएगा
गर दुआ-ए-मग़फ़िरत में आप ही सफ़ में न हों
तो सफ़र मुल्क-ए-अदम का बे-मज़ा हो जाएगा!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आराईशें : अभिलाषाएं; पुर्शिसें: सहानुभूति प्रकट करना; ज़ख्म-ए-निहाँ : अंतर्मन का घाव;
कोशिश -ओ-तदबीर: प्रयास एवं युक्ति; सितमगर: यातना देने वाला; बावफ़ा: निर्वाह करने वाला;
तिब्बी: हकीम; मिन्नत: मान-मनौव्वल; सिलसिला: आत्मीय सम्बंध; दुआ-ए-मग़फ़िरत: अर्थी
उठने के पूर्व मृतात्मा की मुक्ति हेतु की जाने वाली प्रार्थना; सफ़: पंक्ति; मुल्क-ए-अदम: परलोक।