किसी ने कुछ सुना होगा किसी ने कुछ कहा होगा
ख़बर यूं ही नहीं बनती, कहीं कुछ तो रहा होगा !
त'अल्लुक़ तोड़ कर तुमसे बहुत कुछ खो दिया हमने
हमें खो कर मगर तुमने कहीं ज़्यादा सहा होगा
परेशां हम अकेले ही नहीं वादाख़िलाफ़ी से
लहू उस बेवफ़ा की आंख से भी तो बहा होगा
किया था आपको आगाह हमने शाह की ख़ू से
यक़ीं के टूटने का हादसा अब बारहा होगा
अवामे-हिंद हैं हम, जब बग़ावत को खड़े होंगे
हमारे हाथ होंगे और उनका असलहा होगा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: त'अल्लुक़: संबंध; परेशां: व्यथित; वादाख़िलाफ़ी: वचन टूटना; बेवफ़ा: वचन तोड़ने वाला; आगाह: पूर्व-सूचित; ख़ू: स्वभाव, व्यक्तित्व; यक़ीं: विश्वास; हादसा: दुर्घटना; बारहा: बार-बार; अवामे-हिंद: भारत के जन-सामान्य; बग़ावत: विद्रोह; असलहा: शस्त्र-भंडार ।
ख़बर यूं ही नहीं बनती, कहीं कुछ तो रहा होगा !
त'अल्लुक़ तोड़ कर तुमसे बहुत कुछ खो दिया हमने
हमें खो कर मगर तुमने कहीं ज़्यादा सहा होगा
परेशां हम अकेले ही नहीं वादाख़िलाफ़ी से
लहू उस बेवफ़ा की आंख से भी तो बहा होगा
किया था आपको आगाह हमने शाह की ख़ू से
यक़ीं के टूटने का हादसा अब बारहा होगा
अवामे-हिंद हैं हम, जब बग़ावत को खड़े होंगे
हमारे हाथ होंगे और उनका असलहा होगा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: त'अल्लुक़: संबंध; परेशां: व्यथित; वादाख़िलाफ़ी: वचन टूटना; बेवफ़ा: वचन तोड़ने वाला; आगाह: पूर्व-सूचित; ख़ू: स्वभाव, व्यक्तित्व; यक़ीं: विश्वास; हादसा: दुर्घटना; बारहा: बार-बार; अवामे-हिंद: भारत के जन-सामान्य; बग़ावत: विद्रोह; असलहा: शस्त्र-भंडार ।