ज़िंदगी में आज भी कुछ ख़ास है
सब्र लेकिन क्या हमारे पास है ?
ख़ुश नहीं हैं आप हमसे रूठ कर
जी, हमें इस दर्द का एहसास है
तोड़ कर दिल पढ़ रहा है मरसिया
देखिए, वो किस क़दर हस्सास है !
तख़्त पर बैठा हुआ जो शख़्स है
सीरतो - तासीर से ख़ुन्नास है !
ख़ुश्क हैं लब ग़ुंच:-ओ-गुल के मगर
क्या बहारों को वफ़ा का पास है ?
तू नहीं तो याद ही तेरी सही
शुक्र है, कुछ तो हमारे पास है !
क्या कहें उस हुस्ने-जानां की अदा
संगदिल का नाम तक अलमास है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सब्र: धैर्य; एहसास: भान, प्रतीति; मरसिया: शोक-गीत; हस्सास: संवेदनशील; सीरतो - तासीर: प्रकृति और गुण;
ख़ुन्नास: दुष्टात्मा; ख़ुश्क: शुष्क; लब: ओष्ठ; ग़ुंच:-ओ-गुल: कली और फूल; वफ़ा: निर्वाह; पास: ध्यान; हुस्ने-जानां: प्रियतम का सौंदर्य; संगदिल: पाषाण-हृदय; अलमास: हीरा ।
सब्र लेकिन क्या हमारे पास है ?
ख़ुश नहीं हैं आप हमसे रूठ कर
जी, हमें इस दर्द का एहसास है
तोड़ कर दिल पढ़ रहा है मरसिया
देखिए, वो किस क़दर हस्सास है !
तख़्त पर बैठा हुआ जो शख़्स है
सीरतो - तासीर से ख़ुन्नास है !
ख़ुश्क हैं लब ग़ुंच:-ओ-गुल के मगर
क्या बहारों को वफ़ा का पास है ?
तू नहीं तो याद ही तेरी सही
शुक्र है, कुछ तो हमारे पास है !
क्या कहें उस हुस्ने-जानां की अदा
संगदिल का नाम तक अलमास है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सब्र: धैर्य; एहसास: भान, प्रतीति; मरसिया: शोक-गीत; हस्सास: संवेदनशील; सीरतो - तासीर: प्रकृति और गुण;
ख़ुन्नास: दुष्टात्मा; ख़ुश्क: शुष्क; लब: ओष्ठ; ग़ुंच:-ओ-गुल: कली और फूल; वफ़ा: निर्वाह; पास: ध्यान; हुस्ने-जानां: प्रियतम का सौंदर्य; संगदिल: पाषाण-हृदय; अलमास: हीरा ।