हम इल्मे-ग़ज़लगोई अगर भूल जाएंगे
समझो कि ज़िंदगी का हुनर भूल जाएंगे
साहब हैं आप, आपकी बातों का क्या यक़ीं
कहते हैं जो इधर वो: उधर भूल जाएंगे
रखते हैं यार याद ज़माने की हर गली
लेकिन हमारे घर की डगर भूल जाएंगे
साक़ी से कभी आंख मिला कर तो देखिए
दुनिया की शराबों का असर भूल जाएंगे
क़ातिल को ये: गुमां है, नए रंग-रूप से
सब उसके गुनाहों की ख़बर भूल जाएंगे
बेशक़ ख़ुदा हों आप मगर हम भी कम नहीं
हद की तो हम आदाबे-नज़र भूल जाएंगे
देखा कहां जनाब शबे-तार का जमाल
पर्दा उठा तो हुस्ने-क़मर भूल जाएंगे
कब तक बना रहेगा शबे-वस्ल का ग़ुरूर
हमसे नज़र मिली तो बह्र भूल जाएंगे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इल्मे-ग़ज़लगोई: ग़ज़ल कहने की कला; हुनर: कौशल; साक़ी: मदिरा-पात्र देने वाला; गुमां:भ्रम; गुनाहों: अपराधों; हद: अति; आदाबे-नज़र: दृष्टि का सम्मान; शबे-तार: अमावस्या, अंधेरी रात; जमाल: यौवन; हुस्ने-क़मर: चंद्रमा का सौंदर्य; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; ग़ुरूर: गर्व,अहंकार; बह्र: छंद, मानसिक संतुलन।
समझो कि ज़िंदगी का हुनर भूल जाएंगे
साहब हैं आप, आपकी बातों का क्या यक़ीं
कहते हैं जो इधर वो: उधर भूल जाएंगे
रखते हैं यार याद ज़माने की हर गली
लेकिन हमारे घर की डगर भूल जाएंगे
साक़ी से कभी आंख मिला कर तो देखिए
दुनिया की शराबों का असर भूल जाएंगे
क़ातिल को ये: गुमां है, नए रंग-रूप से
सब उसके गुनाहों की ख़बर भूल जाएंगे
बेशक़ ख़ुदा हों आप मगर हम भी कम नहीं
हद की तो हम आदाबे-नज़र भूल जाएंगे
देखा कहां जनाब शबे-तार का जमाल
पर्दा उठा तो हुस्ने-क़मर भूल जाएंगे
कब तक बना रहेगा शबे-वस्ल का ग़ुरूर
हमसे नज़र मिली तो बह्र भूल जाएंगे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इल्मे-ग़ज़लगोई: ग़ज़ल कहने की कला; हुनर: कौशल; साक़ी: मदिरा-पात्र देने वाला; गुमां:भ्रम; गुनाहों: अपराधों; हद: अति; आदाबे-नज़र: दृष्टि का सम्मान; शबे-तार: अमावस्या, अंधेरी रात; जमाल: यौवन; हुस्ने-क़मर: चंद्रमा का सौंदर्य; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; ग़ुरूर: गर्व,अहंकार; बह्र: छंद, मानसिक संतुलन।