ख़बर रखिए ज़रा-सी आप अपने जां-निसारों की
वगरन: जान जाएगी हज़ारों बेक़रारों की
चुहलबाज़ी, मज़ाहो-तंज़ सारे खेल जायज़ हैं
बशर्त्ते आपके दिल में जगह हो दोस्त-यारों की
जहां इंसानियत का नाम लेना भी बग़ावत हो
वहां उम्मीद क्या रखिए मुहब्बत की बहारों की
मुलम्मा देख कर ख़ुश हैं किराएदार बाहर का
किसे है फ़िक्र घर में फैलती जाती दरारों की
हमारा एक .खूं है, एक मज़हब, एक है ईमां
इबादत हम नहीं करते जहां के ताजदारों की
शहंशाही करम से दूर रहना ही मुनासिब है
वो: अक्सर जान भी ले डालते हैं राज़दारों की
छुपाना ही नहीं मुमकिन ग़मे-दिल आबशारों से
तुम्हारे चश्म करते हैं शिकायत ग़मगुसारों की !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जां-निसारों: प्राण न्यौछावर करने वालों; वगरन::अन्यथा; बेक़रारों: उत्कंठितों; चुहलबाज़ी:छेड़-छाड़; मज़ाहो-तंज़: हास्य-व्यंग्य; जायज़: समुचित; बग़ावत:विद्रोह; मुलम्मा: बाह्यावरण, ऊपरी रंग-रूप; किराएदार:प्रवासी, मूल्य दे कर थोड़े समय के निवासी; .खूं: रक्त; मज़हब: धर्म; ईमां: आस्था; इबादत: पूजा; जहां: संसार; ताजदारों: मुकुट पहनने वालों, सत्ताधीशों; शहंशाही: राजसी; करम: कृपा; मुनासिब: न्याय-संगत; राज़दारों : रहस्य जानने वालों; मुमकिन: संभव; ग़मे-दिल: हृदय की पीड़ा; आबशारों: झरनों, जल-प्रपातों;
चश्म: नयन; ग़मगुसारों: दुःख में सांत्वना देने वालों।
वगरन: जान जाएगी हज़ारों बेक़रारों की
चुहलबाज़ी, मज़ाहो-तंज़ सारे खेल जायज़ हैं
बशर्त्ते आपके दिल में जगह हो दोस्त-यारों की
जहां इंसानियत का नाम लेना भी बग़ावत हो
वहां उम्मीद क्या रखिए मुहब्बत की बहारों की
मुलम्मा देख कर ख़ुश हैं किराएदार बाहर का
किसे है फ़िक्र घर में फैलती जाती दरारों की
हमारा एक .खूं है, एक मज़हब, एक है ईमां
इबादत हम नहीं करते जहां के ताजदारों की
शहंशाही करम से दूर रहना ही मुनासिब है
वो: अक्सर जान भी ले डालते हैं राज़दारों की
छुपाना ही नहीं मुमकिन ग़मे-दिल आबशारों से
तुम्हारे चश्म करते हैं शिकायत ग़मगुसारों की !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जां-निसारों: प्राण न्यौछावर करने वालों; वगरन::अन्यथा; बेक़रारों: उत्कंठितों; चुहलबाज़ी:छेड़-छाड़; मज़ाहो-तंज़: हास्य-व्यंग्य; जायज़: समुचित; बग़ावत:विद्रोह; मुलम्मा: बाह्यावरण, ऊपरी रंग-रूप; किराएदार:प्रवासी, मूल्य दे कर थोड़े समय के निवासी; .खूं: रक्त; मज़हब: धर्म; ईमां: आस्था; इबादत: पूजा; जहां: संसार; ताजदारों: मुकुट पहनने वालों, सत्ताधीशों; शहंशाही: राजसी; करम: कृपा; मुनासिब: न्याय-संगत; राज़दारों : रहस्य जानने वालों; मुमकिन: संभव; ग़मे-दिल: हृदय की पीड़ा; आबशारों: झरनों, जल-प्रपातों;
चश्म: नयन; ग़मगुसारों: दुःख में सांत्वना देने वालों।