मेरे अल्फ़ाज़ से आशिक़ी कर के देख
दिल की आवाज़ से दोस्ती कर के देख
जो ख़ुदा को भी मुमकिन नहीं, तुझको है
मजनुओं की तरह बंदगी कर के देख
दाल-रोटी की क़ीमत समझ जाएगा
एक दिन सिर्फ़ फ़ाक़ाकशी कर के देख
मानि-ए-रिज़्क़ यूं तो न समझेगा तू
मुफ़लिसी में बसर ज़िंदगी कर के देख
कोई मुश्किल नहीं जो न हल हो सके
दिल में उम्मीद की रौशनी कर के देख !
( 2013 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द ( बहुव. ); बंदगी: भक्ति; फ़ाक़ाकशी : भूखे रहना; मानि-ए-रिज़्क़: भोजन का
अर्थ/महत्व; मुफ़लिसी: निर्धनता, कंगाली; बसर: व्यतीत।
दिल की आवाज़ से दोस्ती कर के देख
जो ख़ुदा को भी मुमकिन नहीं, तुझको है
मजनुओं की तरह बंदगी कर के देख
दाल-रोटी की क़ीमत समझ जाएगा
एक दिन सिर्फ़ फ़ाक़ाकशी कर के देख
मानि-ए-रिज़्क़ यूं तो न समझेगा तू
मुफ़लिसी में बसर ज़िंदगी कर के देख
कोई मुश्किल नहीं जो न हल हो सके
दिल में उम्मीद की रौशनी कर के देख !
( 2013 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द ( बहुव. ); बंदगी: भक्ति; फ़ाक़ाकशी : भूखे रहना; मानि-ए-रिज़्क़: भोजन का
अर्थ/महत्व; मुफ़लिसी: निर्धनता, कंगाली; बसर: व्यतीत।