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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मुश्किलों का करम...

उम्र  भर  फ़लसफ़ा  रहा  अपना
दर्द  ज़ाहिर  नहीं  किया  अपना

आज  दिल  की  बयाज़  खोली  थी
कोई  सफ़्हा  नहीं  मिला  अपना

तंज़   का     भी     जवाब  दे  देते
दोस्त  हैं, दिल  नहीं  हुआ  अपना

हद  बता  दी    शराब  की    हमने
शैख़    जानें    भला-बुरा    अपना

बुतकदे    आपको    मुबारक   हों
हम  भले   और    मैकदा  अपना

मुश्किलों  का  करम  रहा  हम  पर
दर    हमेशा    रहा  खुला   अपना

लोग     सैलाब    मानते  हैं   जब
रोकता    कौन    रास्ता    अपना

मंज़िलें   ख़ुद   क़रीब   आ  बैठीं
देखता   रह  गया   ख़ुदा  अपना !

                                                                                      (2015)

                                                                               -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: फ़लसफ़ा:दर्शन, सोच; ज़ाहिर:प्रकट, व्यक्त; बयाज़:दैनंदिनी, डायरी; सफ़्हा:पृष्ठ; तंज़:व्यंग्य; हद: सीमा; शैख़ :धर्मोपदेशक; बुतकदे: देवालय; मैकदा: मदिरालय; करम:कृपा; दर:द्वार; सैलाब:बाढ़; मंज़िलें : लक्ष्य ।