किसी का दिल न दुखाया करो, ख़ुदा के लिए
ये: रंग ठीक नहीं नक़्श-ए-वफ़ा के लिए
मेरे वकील रहें दार-उल-क़ज़ा में सनम
कोई हमदर्द रहे लम्ह-ए-सज़ा के लिए
मेरे सनम से कहो अब तो मुसलमां हो लें
मेरा मकान मुन्तज़िर है फ़ातेहा के लिए
उठाओ बोरिया, चलते हैं किसी और शहर
यहाँ मकां नहीं ख़ाली ग़ज़ल सरा के लिए
करम है काम तेरा कर न कर तेरी मर्ज़ी
उठाएंगे न मगर हाथ हम दुआ के लिए।
( 2007 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नक़्श-ए-वफ़ा: निर्वाह की प्रतिमूर्त्ति; दार-उल-क़ज़ा: मृत्यु का न्यायालय,
ईश्वरीय न्यायालय; मुसलमां: आस्तिक, ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाला;
मकान: क़ब्र, पारंपरिक अर्थ में घर;मुन्तज़िर :प्रतीक्षारत;बोरिया:बिस्तर-
-बोरिया;करम:कृपा;फ़ातेहा : मृतकों की क़ब्र अथवा समाधि पर की जाने वाली
वार्षिक प्रार्थना; ग़ज़ल सरा: ग़ज़ल कहने वाला, शायर;करम:कृपा।
ये: रंग ठीक नहीं नक़्श-ए-वफ़ा के लिए
मेरे वकील रहें दार-उल-क़ज़ा में सनम
कोई हमदर्द रहे लम्ह-ए-सज़ा के लिए
मेरे सनम से कहो अब तो मुसलमां हो लें
मेरा मकान मुन्तज़िर है फ़ातेहा के लिए
उठाओ बोरिया, चलते हैं किसी और शहर
यहाँ मकां नहीं ख़ाली ग़ज़ल सरा के लिए
करम है काम तेरा कर न कर तेरी मर्ज़ी
उठाएंगे न मगर हाथ हम दुआ के लिए।
( 2007 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नक़्श-ए-वफ़ा: निर्वाह की प्रतिमूर्त्ति; दार-उल-क़ज़ा: मृत्यु का न्यायालय,
ईश्वरीय न्यायालय; मुसलमां: आस्तिक, ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाला;
मकान: क़ब्र, पारंपरिक अर्थ में घर;मुन्तज़िर :प्रतीक्षारत;बोरिया:बिस्तर-
-बोरिया;करम:कृपा;फ़ातेहा : मृतकों की क़ब्र अथवा समाधि पर की जाने वाली
वार्षिक प्रार्थना; ग़ज़ल सरा: ग़ज़ल कहने वाला, शायर;करम:कृपा।