तबाही के ये: मंज़र देख लीजे
कहां धड़ है कहां सर देख लीजे
बुतों के साथ क्या क्या ढह गया है
ज़रा गर्दन घुमा कर देख लीजे
चले हैं लाल परचम साथ ले कर
कहां पहुंचे मुसाफ़िर देख लीजे
खड़े हैं रू ब रू मज़्लूमो-ज़ालिम
गिरेगी बर्क़ किस पर देख लीजे
हमारे ज़ख़्म उरियां हो गए हैं
यही है वक़्त जी-भर देख लीजे
किसी ने आपको बहका दिया है
मैं शीशा हूं न पत्थर देख लीजे
कहेगा कौन दिल की बात खुल कर
मेरे सीने के नश्तर देख लीजे !
शब्दार्थ : तबाही : विध्वंस; मंज़र : दृश्य; बुतों : मूर्त्तियों ; परचम : ध्वज; मुसाफ़िर :यात्री; रू बरू: आमने-सामने; मज़्लूमो-ज़ालिम : पीड़ित और अत्याचारी; बर्क़: आकाशीय बिजली; ज़ख़्म : घाव; उरियां: अनावृत, उघड़े हुए; शीशा : कांच; नश्तर : शल्यक्रिया का उपकरण, क्षुरी।
कहां धड़ है कहां सर देख लीजे
बुतों के साथ क्या क्या ढह गया है
ज़रा गर्दन घुमा कर देख लीजे
चले हैं लाल परचम साथ ले कर
कहां पहुंचे मुसाफ़िर देख लीजे
खड़े हैं रू ब रू मज़्लूमो-ज़ालिम
गिरेगी बर्क़ किस पर देख लीजे
हमारे ज़ख़्म उरियां हो गए हैं
यही है वक़्त जी-भर देख लीजे
किसी ने आपको बहका दिया है
मैं शीशा हूं न पत्थर देख लीजे
कहेगा कौन दिल की बात खुल कर
मेरे सीने के नश्तर देख लीजे !
शब्दार्थ : तबाही : विध्वंस; मंज़र : दृश्य; बुतों : मूर्त्तियों ; परचम : ध्वज; मुसाफ़िर :यात्री; रू बरू: आमने-सामने; मज़्लूमो-ज़ालिम : पीड़ित और अत्याचारी; बर्क़: आकाशीय बिजली; ज़ख़्म : घाव; उरियां: अनावृत, उघड़े हुए; शीशा : कांच; नश्तर : शल्यक्रिया का उपकरण, क्षुरी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-03-2018) को "ढल गयी है उमर" (चर्चा अंक-2909) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल.......बहुत बहुत बधाई......
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