देते हो धोखा महफ़िल में
क्या शर्म नहीं बाक़ी दिल में
ज़ंग-आलूदा हैं सब छुरियां
वो बात नहीं अब क़ातिल में
मुस्तैद रखो फ़र्ज़ी अपना
है शाह तुम्हारा मुश्किल में
हम सज्दा करते जाते हैं
तुम रंज़िश रखते हो दिल में
शम्'.अ हमसे कह कर देखे
हम आग लगा दें महफ़िल में
तूफ़ां तो सिर्फ़ दिखावा है
गिर्दाब छुपे हैं साहिल में
माज़ी को आग लगा आए
देखें क्या है मुस्तक़्बिल में !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़िल : सभा; ज़ंग-आलूदा : ज़ंग लगी हुई, क्षरित; मुस्तैद: सन्नद्ध; फ़र्ज़ी : शतरंज के खेल का सबसे शक्तिशाली मोहरा, वज़ीर; सज्दा:आपादमस्तक प्रणाम; रंज़िश: वैमनस्य; तूफ़ां: झंझावात; गिर्दाब: भंवर, जलावर्त्त; साहिल: तट; माज़ी : अतीत; मुस्तक़्बिल : भविष्य ।
क्या शर्म नहीं बाक़ी दिल में
ज़ंग-आलूदा हैं सब छुरियां
वो बात नहीं अब क़ातिल में
मुस्तैद रखो फ़र्ज़ी अपना
है शाह तुम्हारा मुश्किल में
हम सज्दा करते जाते हैं
तुम रंज़िश रखते हो दिल में
शम्'.अ हमसे कह कर देखे
हम आग लगा दें महफ़िल में
तूफ़ां तो सिर्फ़ दिखावा है
गिर्दाब छुपे हैं साहिल में
माज़ी को आग लगा आए
देखें क्या है मुस्तक़्बिल में !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़िल : सभा; ज़ंग-आलूदा : ज़ंग लगी हुई, क्षरित; मुस्तैद: सन्नद्ध; फ़र्ज़ी : शतरंज के खेल का सबसे शक्तिशाली मोहरा, वज़ीर; सज्दा:आपादमस्तक प्रणाम; रंज़िश: वैमनस्य; तूफ़ां: झंझावात; गिर्दाब: भंवर, जलावर्त्त; साहिल: तट; माज़ी : अतीत; मुस्तक़्बिल : भविष्य ।