ये रेगिस्तान दिल का, यां समंदर डूब जाते हैं
हमीं हैं जो यहां तक भी गुलों को खींच लाते हैं
तुम आंखें बंद करके आईने में ढूंढते क्या हो
हमारे ख़्वाब तो दिल में तुम्हारे झिलमिलाते हैं
ख़्यालों को कभी आज़ाद रख कर भी ग़ज़ल कहिए
बह् र की क़ैद से अक्सर परिंदे भाग जाते हैं
सुना तो है किसी से, आप भी मायूस हैं दिल से
चले आएं यहां, हम आपको नुस्ख़े बताते हैं
दिलों को लूटने का फ़न कहीं से सीख आते हैं
यहां आ कर हसीं सब दांव हम पर आज़माते हैं
यहां क्या है, वहां जाओ जहां पर हुस्न अटका है
यहां पर तो ज़ईफ़ी के निशां दिल को डराते हैं
हमारी गोर को सब रौज़:-ए-दरवेश कहते हैं
फ़रिश्ते भी यहां आ कर अदब से सर झुकाते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रेगिस्तान: मरुस्थल; समंदर: समुद्र; बह् र: छंद; क़ैद: कारा; परिंदे: पक्षी; मायूस: निराश; नुस्ख़ा: उपचार का उपाय; फ़न: कला; हसीं: सुंदर लोग; हुस्न: सौंदर्य; ज़ईफ़ी के निशां: वृद्धावस्था के चिह्न; गोर: क़ब्र, समाधि; रौज़:-ए-दरवेश: चमत्कारी सिद्ध व्यक्ति की दरगाह; अदब: सम्मान।
हमीं हैं जो यहां तक भी गुलों को खींच लाते हैं
तुम आंखें बंद करके आईने में ढूंढते क्या हो
हमारे ख़्वाब तो दिल में तुम्हारे झिलमिलाते हैं
ख़्यालों को कभी आज़ाद रख कर भी ग़ज़ल कहिए
बह् र की क़ैद से अक्सर परिंदे भाग जाते हैं
सुना तो है किसी से, आप भी मायूस हैं दिल से
चले आएं यहां, हम आपको नुस्ख़े बताते हैं
दिलों को लूटने का फ़न कहीं से सीख आते हैं
यहां आ कर हसीं सब दांव हम पर आज़माते हैं
यहां क्या है, वहां जाओ जहां पर हुस्न अटका है
यहां पर तो ज़ईफ़ी के निशां दिल को डराते हैं
हमारी गोर को सब रौज़:-ए-दरवेश कहते हैं
फ़रिश्ते भी यहां आ कर अदब से सर झुकाते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रेगिस्तान: मरुस्थल; समंदर: समुद्र; बह् र: छंद; क़ैद: कारा; परिंदे: पक्षी; मायूस: निराश; नुस्ख़ा: उपचार का उपाय; फ़न: कला; हसीं: सुंदर लोग; हुस्न: सौंदर्य; ज़ईफ़ी के निशां: वृद्धावस्था के चिह्न; गोर: क़ब्र, समाधि; रौज़:-ए-दरवेश: चमत्कारी सिद्ध व्यक्ति की दरगाह; अदब: सम्मान।