दीन-ओ-दुनिया से दामन बचाते हुए
कुछ पशेमां हैं वो: पास आते हुए
ये: हसीं भी ख़ुदा की क़सम, ख़ूब हैं
सोचते भी नहीं दिल जलाते हुए
आशिक़ों का कलेजा बड़ी चीज़ है
जान लोगे हमें आज़माते हुए
अर्श से तूने जैसे ही आवाज़ दी
हमने उफ़ तक न की जां लुटाते हुए
मक़बरा है हमारा इसी शहर में
आ रहो एक दिन, आते-जाते हुए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पशेमां: लज्जित; अर्श: आसमान; मक़बरा: समाधि, क़ब्र
कुछ पशेमां हैं वो: पास आते हुए
ये: हसीं भी ख़ुदा की क़सम, ख़ूब हैं
सोचते भी नहीं दिल जलाते हुए
आशिक़ों का कलेजा बड़ी चीज़ है
जान लोगे हमें आज़माते हुए
अर्श से तूने जैसे ही आवाज़ दी
हमने उफ़ तक न की जां लुटाते हुए
मक़बरा है हमारा इसी शहर में
आ रहो एक दिन, आते-जाते हुए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पशेमां: लज्जित; अर्श: आसमान; मक़बरा: समाधि, क़ब्र