दिल्लगी भूल जाइए साहब
दिल लगा के दिखाइए साहब
शे'र यूं ही नहीं हुआ करता
कोई सदमा उठाइए साहब
चश्मे-नम सुर्ख़ हुई जाती है
और कितना सताइए साहब
जिस्मो-दिल ख़ाक की अमानत हैं
रू: से रिश्ता बनाइए साहब
हम समन्दर-सा ज़र्फ़ रखते हैं
शौक़ से डूब जाइए साहब
ये: फ़क़ीरी है घर जला देगी
सोच कर पास आइए साहब
उम्र बीती है बुतपरस्ती में
ख़ाक ईमां बचाइए साहब !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिल्लगी: हास-परिहास, विनोद; सदमा: दु:ख का आघात; चश्मे-नम: भीगी आंख; सुर्ख़: रक्तिम; जिस्मो-दिल: शरीर और मन; ख़ाक: मिट्टी, धूल; अमानत: धरोहर; रू: : रूह, आत्मा; ज़र्फ़: गहराई; फ़क़ीरी: वैराग्य; बुतपरस्ती: मूर्त्ति-पूजा, मानवीय सौन्दर्य की पूजा; ईमां: ईश्वर में आस्था !
दिल लगा के दिखाइए साहब
शे'र यूं ही नहीं हुआ करता
कोई सदमा उठाइए साहब
चश्मे-नम सुर्ख़ हुई जाती है
और कितना सताइए साहब
जिस्मो-दिल ख़ाक की अमानत हैं
रू: से रिश्ता बनाइए साहब
हम समन्दर-सा ज़र्फ़ रखते हैं
शौक़ से डूब जाइए साहब
ये: फ़क़ीरी है घर जला देगी
सोच कर पास आइए साहब
उम्र बीती है बुतपरस्ती में
ख़ाक ईमां बचाइए साहब !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिल्लगी: हास-परिहास, विनोद; सदमा: दु:ख का आघात; चश्मे-नम: भीगी आंख; सुर्ख़: रक्तिम; जिस्मो-दिल: शरीर और मन; ख़ाक: मिट्टी, धूल; अमानत: धरोहर; रू: : रूह, आत्मा; ज़र्फ़: गहराई; फ़क़ीरी: वैराग्य; बुतपरस्ती: मूर्त्ति-पूजा, मानवीय सौन्दर्य की पूजा; ईमां: ईश्वर में आस्था !